सब्जी की खेती कैसे करें (सही तरीका व विधि) | Vegetable Farming in Hindi

अच्छी सेहत और स्वादिष्ट भोजन के लिए सब्जियाँ भारतीय लोगों के लिए हमेशा से ही मांग का विषय रही है। इंसान अब अपना पेट भरने के साथ-साथ पौष्टिक भोजन भी करना चाहता है, ताकि उसे मानसिक या शारीरिक रोगों का सामना न करना पड़े।

सब्जियों में बहुत से पोषक तत्व जैसे- प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज पदार्थ, वसा, एंटीऑक्सीडेंट तथा अच्छी गुणवता वाले रेशे पाए जाते हैं।

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां के 60% से भी अधिक निवासी कृषि पर निर्भर है। बाजार में भारी मांग और बड़ा कृषि क्षेत्र होने के कारण यहाँ सब्जी की खेती करना बहुत फायदेमंद है।

इस कारण किसान कम समय में ज्यादा सब्जी का उत्पादन कर अधिक से अधिक लाभ अर्जित करना चाहता है।
अगर तरीके से सब्जी की खेती की जाएँ तो किसान प्रति हेक्टेयर 1,50,000 रुपए का लाभ अर्जित कर सकते हैं, जो पारंपरिक खेती की तुलना में बहुत अच्छी कमाई है।

इसके अलावा सब्जी की खेती को एक वर्ष में 3-4 बार आसानी से किया जा सकता है। इसके अलावा सब्जियों के निर्यात की भी बहुत अधिक संभावनाएं है, जिस कारण इनके दाम भी अच्छे मिलते हैं।

National Horticulture Board के अनुसार वर्ष 2020-21 में भारत ने कुल 1917.7 लाख metric tone सब्जी का उत्पादन किया था। सब्जी का यह उत्पादन 103.5 लाख हेक्टेयर की भूमि पर किया गया था। इस तरह से भारत सब्जी उत्पादन में चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है।

भिंडी जैसी सब्जी के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा सब्जी उत्पादन करने वाला देश है, इसके अलावा बैंगन, पत्तागोभी, फूलगोभी, प्याज और टमाटर जैसी सब्जियों के उत्पादन के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश है।

भारत में सबसे ज्यादा सब्जी उत्पादन करने वाले राज्य पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, बिहार और आंध्रप्रदेश है। ये चारों राज्य मिलकर भारत की कुल सब्जी का लगभग आधा हिस्सा उत्पादित करते हैं।

सब्जी की खेती कैसे करें (सही तरीका व विधि)

sabji ki kheti kaise kare

1.खेत की तैयारी

सब्जी की खेती करने से पहले खेत को अच्छे से तैयार कर लेना चाहिए। जिसके लिए अच्छे से जुताई कर उसमें खाद एवं उर्वरकों का संतुलित तरीके से उपयोग करना जरूरी है।

यदि आलू, मुली, गाजर, शलजम, चुकंदर जैसी जमीन में तैयार होने वाली सब्जी की खेती करनी है, तो मिट्टी की गहरी जुताई अवश्य करनी है।

सबसे पहले जुताई हैरो और फिर इसके बाद तीन जुताइयाँ कल्टीवेटर से कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना लेवें। अगर आपको जमीन थोड़ी ऊंची-नीची लगे तो लेवलर की मदद से जमीन को समतल कर लें।

इसके अलावा आपको खेत में गोबर की खाद का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करना है। ताकि जमीन की उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जा सके।

सब्जियों के प्रकार

वैसे हमारे भारत में बहुत प्रकार की सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। लेकिन इनमें से मुख्य सब्जियाँ इस प्रकार है-

1. सीधे खेत की सब्जियाँ- मटर, राजमा, आलू, मेथी, शलगम, पालक, गाजर, मूली आदि।

2. रोपण वाली सब्जियाँ- टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी, ब्रोकोली, चाइनीज खीरा, ब्रूसेल्स, चिकोरी आदि।

3. वानस्पतिक सब्जियाँ- यह सब्जियाँ वानस्पतिक तरीके से उगाई जाती है। जैसे- आलू, प्याज, परवल, कुंदरु, खेकसा इत्यादि।

पौधे कैसे तैयार करें?

सब्जी की खेती में सीधे बीज रोपण की बजाय पौधे लगाकर खेती करना ज्यादा लाभदायक होता है। क्योंकि सब्जियों के बीज बहुत छोटे होते हैं।

अगर उन्हें सीधा खेत में बोया गया तो तकरीबन 1 महीने तक अच्छे से देखभाल करनी होगी। फिर इतने बड़े खेत में देखभाल करना मुश्किल का काम होता है। लेकिन एक जगह नर्सरी में पौधे तैयार करने से श्रम और मेहनत दोनों की बचत होती है।

  • सबसे पहले 3 मीटर लंबी और 1 मीटर चौड़ी जमीन से लगभग 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक क्यारियाँ बनाएँ।
    जिस जगह पौधे तैयार करते हैं, उसे पौधशाला कहते हैं। पौधशाला की मिट्टी को फावड़े की मदद से जुताई कर भुरभुरी बना लेनी है।
  • इसके बाद मिट्टी में कैप्टान/थिरम या ट्राईकोडर्मा जैसे फफूंदनाशक का छिड़काव करना है। इसके अलावा आप इनका प्रयोग बीज संशोधन में भी कर सकते हैं।
  • फिर बीज की बुवाई छिड़कर करने की बजाय पंक्तियों में एक-एक बीज की बुआई करें। आमतौर पर 2 बीजों के बीच की दूरी 2 सेमी. होनी चाहिए।
  • बुवाई होने के बाद बीजों को कम्पोस्ट और सुखी पुआल की मदद से ढक देना चाहिए, जिस पर फूंवारे की मदद से सिंचाई करनी है।
  • बीज बुवाई के तीन बाद से ही पौधों के अंकुरण का ध्यान रखना है, जैसे ही सफ़ेद धागा निकलने लगे तो उस समय खरपतवार को हटा देना है।
  • जैसे ही पौधे 21 दिन के हो जाएँ तो सिंचाई को बंद कर देना है, ताकि जब पौधों को स्थानांतरित किया जाए तो किसी प्रकार की कोई समस्या न आएँ।

1.रोपाई

अक्सर यह देखा जाता है कि हम जब नर्सरी से ले जाकर पौधे लगाते हैं, तो वो कुछ ही दिन बाद मुरझा जाते हैं। जिस कारण हमें काफी नुकसान झेलना पड़ता है। अगर आप भी इस समस्या से छुटकारा पाना चाहते हैं तो कुछ बातों का आपको ध्यान रखना होगा।

  • पौध रोपण के एक दिन पहले नर्सरी में पौधों के ऊपर से कचरा हटाकर कीटनाशक और फफूंदनाशक का छिड़काव कर देना चाहिए। ताकि रोपाई के बाद 1 हफ्ते तक पौधों में कोई बीमारी न पनपे।
  • पौधों को उखाड़ने से थोड़ी देर पहले हल्की सिंचाई करने से उन्हें उखाड़ने में समस्या नहीं आती है।
    पौधों को खुरपी की मदद से उखाड़ना चाहिए, जिससे उनके टूटने का खतरा कम हो जाता है।
  • कोशिश करें कि रोपण दोपहर के बाद करें, ताकि पौधों को दोपहर की गर्मी का सामना न करना पड़ें।
    पौधों को उखाड़ने के बाद 40-40 के बंडल बनाकर उनकी जड़ों को मिट्टी से ढककर ही खेत में ले जाना है। इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि जड़ें ज्यादा हवा के संपर्क में न आएँ।
  • इसके बाद आपको खेत में जैविक खाद का एक घोल बनाकर तैयार रखना है, जिसमें पौधों को रोपाई से पहले कुछ समय तक रखना है।
  • इसके बाद आपको अपनी सब्जी के प्रकार के हिसाब से रोपाई करनी है। और इस बात का ध्यान रखना है कि जब तक पौधे मिट्टी में पूरी तरह पकड़ न बना लेवें, खुली सिंचाई नहीं करनी है।

2. खरपतवार

खरपतवार किसी भी फसल के लिए हमेशा से ही एक बाधा का विषय रहा है। कई बार तो यह फसल को इस तरह से नुकसान पहुंचाता है कि कुछ ही समय में 50% उपज को कम कर देता है। अक्सर खरपतवार उन पौधों को कहा जाता है, जो मुख्य फसल के अलावा खेत में ऊग जाते हैं।

इसके अलावा मुख्य फसल की अन्य प्रजातियों के पौधे भी खरपतवार की श्रेणी में आते है। खरपतवार पौधों के साथ ही शुरू हो जाता है, और उसके पूरे जीवनकाल तक उसे नुकसान पहुंचाता है। इस प्रकार से अगर इसे समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो पैदावार में भारी गिरावट देखने को मिलती है।

अक्सर देखा जाता है, कि हम खेत में खरपतवार को तभी निकालना शुरू करते हैं, जब तक कि वो हाथ से पकड़ना शुरू न हो जाए।

लेकिन इस समय तक वो पौधों को काफी नुकसान पहुंचा देता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए आप हमारे द्वारा बताए गए तरीकों की मदद ले सकते हैं।

  • नर्सरी में पौधों को तैयार करते समय शुद्ध एवं साफ बीज का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा आप मृदा सौर्यीकरण की भी सहायता ले सकते हैं।
  • जिसमें पौधों की रोपाई से 40 दिन पहले तक क्यारियों को पोलिथीन की मदद से ढककर रखा जाता है। जिससे जमीन का तापमान बढ़ने लगता है और फलस्वरूप खरपतवार के बीज नष्ट होने लगते हैं।
  • जिस खेत में आप सब्जी की खेती करना चाहते हैं, उस खेत में गर्मी की ऋतु में गहरी जुताई करने से खरपतवार नष्ट हो जाता है।
  • इसके अलावा आप उचित फसल चक्र अपनाकर भी खरपतवार नियंत्रित कर सकते हैं। क्योंकि एक ही फसल की लगातार बुवाई करने से खरपतवार का प्रकोप बढ़ जाता है।
  • हाथ द्वारा निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार की समस्या काफी कम हो जाती है। पौधों की रोपाई के 20 दिन बाद खुरपी से खरपतवार की गुड़ाई करने से काफी सहायता मिलती है।

सिंचाई की व्यवस्था

सब्जियों में 90% पानी होता है, जिस कारण इनके बेहतर आकार और गुणवता को बढ़ाने के लिए अच्छी सिंचाई की व्यवस्था करनी भी बहुत जरूरी है। अगर सिंचाई में थोड़ी सी भी देरी हो जाए तो सब्जियों की गुणवता और उत्पादन में बहुत कमी आ जाती है।

सब्जियों के पौधे विभिन्न अवस्थों से होकर गुजरते हैं, इस कारण उस समय उन्हें पानी देना अतिआवश्यक होता है।

यह अवस्थाएँ वानस्पतिक विकास के समय, फूल आने एवं फल वृद्धि के समय होती है। एक बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि खुली सिंचाई सब्जी की खेती में जल बर्बादी का कारण बनती है।

क्योंकि खुली सिंचाई में पानी का 40% हिस्सा ही पौधों के काम आता है, बाकी का वाष्पित होकर उड़ जाता है। इसके अलावा ज्यादा पानी कई बार सब्जीयों को नुकसान भी पहुंचा सकता है।

किसान आधुनिक सिंचाई पद्धति जैसे ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई, कूड़ द्वारा सिंचाई आदि तरीकों का सहारा ले सकते हैं। इससे उपज बढ़ने के साथ पानी की भी बचत होती है।

सब्जियों में सिंचाई की आवश्यकता उनके प्रकार, मिट्टी की बनावट एवं मौसम पर निर्भर होती है। अगर आप ड्रिप पद्धति का उपयोग कर रहे हैं, तो यह सबसे उत्तम विधि है।

इसके लिए आपको गर्मियों के दिन में रोजाना और सर्दियों के दिनों में 3 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी है।

सब्जियों में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन

जब फसलों में पोषक तत्वों को एक से अधिक स्रोतों से देना तथा उनका इस प्रकार प्रबंधन करना जिससे पौधों को उनकी आवश्यकता के अनुसार लागत पोषण मिलता रहे एवं भूमि की उर्वराशक्ति तथा स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े, एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन कहलाता है।

एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन के मुख्यतः 2 घटक है-

1. पहला घटक

पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए इसे मुख्यतः चार श्रेणियों में बांटा गया है।

  • विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरक जैसे यूरिया, डीएपी, सिंगल सुपर फॉस्फेट, म्यूरिएट ऑफ पोटाश, जिंक सल्फेट इत्यादि प्रकार के पोषक तत्व इस श्रेणी में आते हैं।
  • दूसरी श्रेणी में जैविक या कार्बनिक खादें आती है। इसमें गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, केंचुआ खाद, नीम की खली, महुआ की खली, अरंडी की खली इत्यादि शामिल है।
  • पोषक तत्वों की तीसरी श्रेणी के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की जीवाणु खादें या जैव उर्वरक जैसे राइजोबियम कल्चर, एजोटौबेक्टर, एजोस्पिरिलम, वैम तथा पी.यस.बी. आते हैं।
  • चौथी श्रेणी के अंतर्गत हरी खादों का प्रयोग किया जाता है।
    इसके अलावा कोयले की राख़, जिसे फ्लाई ऐश भी कहते हैं। इसमें काफी मात्रा में पोटाश, कैल्सियम, मैग्निशियम और सूक्ष्म पोषक पाए जाते हैं। इसके अलावा चीनी मिलों से निकलने वाली महि खाद भी इसी प्रकार का एक उदाहरण है। हालांकि इनका उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

2. दूसरा घटक

1. मेड़ बंदी समतलीकरण

2. ग्रीष्म ऋतु की गहरी जुताई

3. उचित फसलचक्र अपनाना

4. उचित सिंचाई एवं जल प्रबंधन

5. खरपतवार नियंत्रण

6. कीट व्याधि नियंत्रण

7. मृदा सुधारकों का प्रयोग

8. मृदा एवं जल संरक्षण के उपाय

सब्जियों की विषाणु जनित रोगों से सुरक्षा

ऐसे छोटे-छोटे जीव जो हमें सीधे आँखों से दिखाई नहीं देते हैं, विषाणु कहलाते हैं। इन्हें देखने के लिए इलेक्ट्रॉन सूक्षमदर्शी (माइक्रोस्कोप) की सहायता ली जाती है। यह छोटे जीव फसल में कई प्रकार के रोग पैदा करते हैं, जिन्हें विषाणु रोग के नाम से जाना जाता है।

अगर सब्जियों के पौधों पर नई एवं छोटी पत्तियाँ पीली पड़ने लग जाएँ तो समझ लेना चाहिए कि विषाणु रोग लगना शुरू हो गया है।

हालाँकि कीटों के प्रकोप से भी ऐसे ही लक्षण दिखाई देते हैं, लेकिन कीट पौधे की नई और पुरानी दोनों पत्तियों को नुकसान पहुंचाते है।

सब्जियों को विषाणु जनित रोगों से बचाने के लिए रोग प्रतिरोधी/सहनशील प्रजातियों का चयन करना चाहिए। एवं बीज की रोपाई से पहले बीज उपचार करना चाहिए।

खेत में खरपतवार जैसी बीमारी को खत्म कर देना चाहिए, सात ही फसल चक्र अपनाना चाहिए। जिस भी पौधे पर यह रोग दिखाई दे, उसे जल्दी से उखाड़कर जला देना चाहिए। कीटों का विशेष रूप से नियंत्रण जरूरी है, क्योंकि यह ही विषाणु वाहक का काम करते हैं।

जैविक विधि से कीट एवं रोग नियंत्रण

कीट सब्जी की फसल को 30-40% तक खत्म कर देते हैं। इसलिए किसान इनके खात्मे के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं।

परंतु कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचता है। इसलिए आजकल जैविक विधि से फसल में कीट एवं रोग नियंत्रण किया जाता है।

जैव नियंत्रण कारक अपेक्षाकृत सस्ते और पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। यह सिर्फ उन्हीं पर प्रहार करता है, जिसका चयन किया जाता है।

पौधों में इसके कोई साइड इफेक्ट नहीं देखने को मिलते हैं। एक बार इनके संपर्क में आने पर कीट का दोबारा से विकास नहीं हो पाता है।

सूत्रकृमि प्रबंधन

भूमिगत होने तथा आँख से दिखाई न पड़ने वाले जीव सूत्रकृमि कहलाते हैं। किनीमोटेड प्रायः एक ऐसा ही जीव है, जिसमें न तो श्वसन तंत्र होता है और न ही परिसंचरण तंत्र।

कई बार इन्हें फसलों को छिपा हुआ शत्रु भी कहा जाता है। यह जीव पौधे की जड़ों में से पोषक तत्व चूसकर उनकी जड़ों को क्षतिग्रस्त करता है।

परिणामस्वरूप पौधा कमजोर होकर पीला पड़ने और सूखने लगता है। इनकी रोकथाम के लिए आपको कुछ कदम उठाने होंगे-

  • जिस जगह आपको लगे कि सूत्रकृमियों का प्रकोप है, उस जगह नर्सरी या पौधशाला न बनाएँ।
  • रोपाई के समय सूत्रकृमि रहित पौधों का प्रयोग करना चाहिए।
  • अलग-अलग सब्जियों में सूत्रकृमि की अलग-अलग प्रजातियाँ पाई जाती है। इसलिए इनकी पहचान करना भी बहुत जरूरी है।
  • कार्बोफ़्युरोन 3G नामक रसायन से पौधशाला को उपचारित करने से इनको खत्म किया जा सकता है।

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निष्कर्ष:

तो ये था सब्जी की खेती कैसे करें, हम उम्मीद करते है की इस लेख को पूरा पढ़ने के बाद बापको सब्जी की खेती करने का सही तरीका अच्छे से पता चल गया होगा।

अगर आपको ये लेख अच्छी लगी तो इसको जरूर करें ताकि ताकि अधिक से अधिक लोगन को सब्जी की खेती कैसे करते है इसके बारे में सही जानकारी मिल पाए।

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