सबसे ज्यादा कमाई वाली फसल कौन सी है? | सबसे ज्यादा कमाई वाली खेती

आबादी में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की आधी से ज्यादा जनसंख्या गांवों में निवास करती है। गाँव में लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है। देश की लगभग अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है।

प्राचीनकाल से ही भारत में अलग-अलग प्रकार की खेती की जा रही है। अपने पूर्वजों से मिले इस हुनर का उपयोग आज भी भारतीय किसान करते हैं।

हालांकि आज के समय में आधुनिक खेती का बोलबाला बढ़ गया है। भारत के अधिकांश हिस्से में खेती करने योग्य उपजाऊ जमीन है, खासकर उत्तर भारत में।

यहाँ पर भारत की दो मुख्य नदियां गंगा और यमुना सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाती है। अच्छी तरह से सिंचाई और कृषि योग्य जलवायु होने के कारण यहाँ पर खेती करना काफी आसान है। वर्तमान समय में किसान अनेक प्रकार के तरीकों से खेती कर अपनी आजीविका बढ़ाना चाहते है।

तो आईए आज हम जानते हैं कि भारत में सबसे ज्यादा कमाई वाली फसल कौनसी है। जिसे एक आम किसान भी कर सके और एक सम्पन्न किसान भी। आज के हमारे इस लेख में हम तीन ऐसी फसलों के बारे में बताएँगे जो प्रत्येक किसान के लिए कमाई का अच्छा स्त्रोत बन सके।

सबसे ज्यादा कमाई वाली खेती कौन सी है?

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  • चन्दन की फसल
  • तुलसी की फसल
  • वनीला की फसल

1.चन्दन की खेती

चन्दन भारत में सबसे पवित्र वनस्पतियों में से एक है। हिन्दू रीति-रिवाजों में चन्दन का महत्वपूर्ण स्थान है। आज भी कुछ लोग सुबह-सुबह चन्दन का टीका लगाकर घर से निकलते हैं।

इसके अलावा चन्दन का उपयोग एक औषधीय पौधे के रूप में भी किया जाता है। इसके उपयोग से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।

  • मांग

इस तरह से चन्दन एक ऐसी फसल है, जिसकी बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है। वर्तमान समय में भारत चन्दन की मांग पूरी करने के लिए विदेशों से इसका आयात करता है। इतनी ज्यादा मांग को देखते हुए, चन्दन की खेती करना एक फायदे का सौदा है।

चन्दन की खेती के लिए लाल, काली, दोमट्ट, चिकनी और बलुई मिट्टी उपयुक्त है। दोमट्ट और बलुई मिट्टी में इसकी फसल से सबसे ज्यादा पैदावार होने की संभावना रहती है। साथ ही जलोढ़ मिट्टी भी चन्दन की खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है।

  • सिंचाई और जलवायु

भारत के उत्तरी-पश्चिमी राज्य यथा- राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जलवायु चन्दन की खेती के लिए अच्छी और उत्तम है।

कम पानी की खपत होने के कारण इसकी खेती करना और भी आसान है। खासकर उन राज्यों में जहां पानी की हमेशा कमी बनी रहती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण राजस्थान का है।

राजस्थान के किसान चन्दन की खेती में ड्रिप सिंचाई विधि का प्रयोग करते हैं। इससे पानी की बचत भी होती है और पौधों की जड़ों के पास पानी इकट्ठा नहीं होता है। हालांकि बूंद-बूंद सिंचाई विधि थोड़ी महंगी है, लेकिन किसान अपने खेत में सौर ऊर्जा के प्रयोग से इस खर्च को कम कर सकते हैं।

चन्दन की खेती के लिए 15-40 डिग्री तापमान सर्वोत्तम है। मार्च-अप्रैल के महीने में इसकी बुवाई की जाती है। उस समय तापमान न तो ज्यादा कम होता है और न ही ज्यादा। इस कारण से पौधों को ऊगने और विकसित होने में किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है

  • खेती की तैयारी और बुवाई

इसके बाद सबसे पहले खेत को तैयार करना होता है। जिसके लिए बुवाई से कुछ दिन पहले खेत में गोबर की खाद का छिड़काव कर देना चाहिए। गोबर की खाद खेती के लिए वरदान होती है। आप एक एकड़ में 40-50 टन गोबर की कम्पोस्ट खाद का उपयोग कर सकते हैं।

खाद के बढ़िया तरीके से मिट्टी में मिल जाने के बाद 2-3 बार खेत को अच्छे से जोत लेना चाहिए।खेत की जुताई के समय आपको बढ़िया पौधों को खरीदना है, जिनकी बुवाई आपको खेत में करनी है।

आप या तो खुद नर्सरी तैयार कर सकते हैं या किसी नजदीक की नर्सरी से पौधे खरीद सकते हैं। खुद नर्सरी तैयार करने पर ज्यादा लागत आ सकती है। इसलिए हमारी आपसे यह सलाह है कि आप पौधे किसी बढ़िया नर्सरी से खरीदे।

  • पौधों की परिपक्वता और कमाई

बढ़िया पौधे खरीदने के बाद आप अच्छे से स्वस्थ पौधों का चयन कर उनकी बुवाई करनी है। चन्दन का पौधा पूरी तरह से तैयार होने में 10-15 वर्ष का समय ले लेता है। पूरी तरह से परिपक्व होने के बाद इसके पेड़ की ऊंचाई 20-25 फीट ऊंची तक हो जाती है।

एक बार पेड़ तैयार होने के बाद आप इससे एक एकड़ में 80-90 लाख रुपए कमा सकते हैं। अगर अच्छी देखभाल की जाए तो चन्दन का पेड़ 100 सालों तक जीवित रहता है। इस तरह से आप चन्दन की खेती से कुछ ही वर्षों में लखपति से करोड़पति बन सकते हैं।

2. तुलसी की खेती

चन्दन की ही तरह तुलसी के पौधे का भी धार्मिक महत्व है। हिंदू धर्म के लोग इसके पौधे को अपने घर के आँगन में लगाते है, और सुबह-सुबह इसे जल अर्पित कर नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करते हैं। इसके अलावा तुलसी का उपयोग औषधी के रूप में भी किया जाता है।

वर्तमान समय में इसकी बढ़ती मांग ने भारतीय किसानों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। देश के कई हिस्सों में किसान और सरकार दोनों ही इसके उत्पादन को बढ़ाने पर ज़ोर दे रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक तुलसी से बने उत्पादों के कारोबार में 15000 करोड़ की वृद्धि होने वाली है।

  • तुलसी के फायदे

तुलसी एक औषधीय पौधा है, इससे कई प्रकार की औषधीयां बनाई जाती है। तुलसी के 50 ग्राम बीजों की मात्रा में 2 -3 ग्राम प्रोटीन, 2-2.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, पौटेशियम, कैल्शियम और विटामिन जैसे पौषक तत्व पाए जाते हैं। पौषक तत्वों से भरपूर होने के कारण इसकी औषधि से कई रोगों का इलाज किया जा सकता है।

साथ ही तुलसी का उपयोग ब्यूटि प्रोडक्टस बनाने में भी किया जाता है। गाँव में आज भी महिलाएं तुलसी के पत्तों से पेस्ट बनाकर अपने चेहरे पर लगाती है। जिससे उनकी त्वचा हमेशा मुलायम और सुंदर बनी रहती है। तुलसी के पत्तों को खाने से मधुमेह, जुखाम, बुखार आदि से का इलाज किया जा सकता है।

  • तुलसी की खेती से मुनाफा

तुलसी की फसल तैयार होने के बाद इसके बीज और तेल को बाजार में बेचा जाता है। इसका शुद्ध तेल बाजार में 1000 रुपए/किलो के आसपास बिकता है। एक हेक्टेयर में एक बार में 200 किलो तेल का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है। तुलसी की फसल एक साल में तीन बार की जाती है।

इस कारण एक वर्ष में एक हेक्टेयर से 6 लाख रुपए तक आमदन की जा सकती है। चूंकि तुलसी की फसल में एक हेक्टेयर में लागत 60-70 हजार रुपए आती है। इस कारण आसानी से एक वर्ष में इसकी फसल से 5 लाख रुपए कमाए जा सकते हैं।

  • जलवायु और मिट्टी

तुलसी की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और कटिबंधीय जलवायु उत्तम रहती है। इसकी खेती के लिए 15-35 डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है। अत्यधिक बरसात वाले क्षेत्रों में इसकी फसल को नुकसान हो सकता है। इस समस्या को दूर करने के लिए उत्तम जल निकासी वाले खेत उपयुक्त रहते है।

तुलसी की खेती बलुई और दोमट्ट मिट्टी में की जाती है। जिसके लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से जोता जाता है और उसके बाद में गोबर की खाद मिलाई जाती है। गोबर की खाद को मिलाने के 1 महीने बाद खेत की दोबारा से जुताई की जाती है।

  • रोपाई और कटाई

जुलाई के महीने में तुलसी की रोपाई की जाती है, क्योंकि या समय मानसून का होता है। इस समय पानी की कोई समस्या नहीं होती है। वैसे तुलसी की खेती के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है। इसके पौधों की रोपाई खेत में क्यारियाँ बनाकर 40-40 सेमी. की दूरी पर की जाती है।

रोपाई करने के कुछ दिन बाद एक सिंचाई आवश्यक है। पूरी फसल पककर तैयार होने के अंतराल में 4-5 सिंचाई की जाती है। इसकी खेती में खरपतवार और कीड़े का भी विशेषकर ध्यान रखना पड़ता है। अगर आपको लगे की इनसे पौधों को नुकसान हो रहा है तो आप कीटनाशक का प्रयोग सावधानीपूर्वक कर सकते हैं।

तुलसी के पौधों को पककर तैयार होने में 12-15 सप्ताहों का समय लग जाता है। जब पौधा नीचे से हल्का पीला दिखाई देने लग जाए तो समझ जाना चाहिए कि फसल पककर तैयार हो चुकी है। पौधों को जमीन से 20 सेमी. की ऊंचाई पर काटा जाता है। ताकि जब आगे की फसल ली जाए तो इस पर दोबारा से फल लग जाएँ।

3. वनीला की खेती

वनीला एक ऐसी फसल है जिसे चाँदी की फसल भी कहा जाता है। क्योंकि यह बाजार में 45000 रुपए/किलो से भी ज्यादा के भाव में बिकती है। आपने आइसक्रीम के वनीला फ्लेवर के बारे में जरूर सुना होगा। बस आइसक्रीम का यह वनीला फ्लेवर इसी से बनता है।

आइसक्रीम का यह फ्लेवर काफी महंगा मिलता है। दुनियाभर के बाज़ारों में हर समय वनीला की मांग बनी रहती है। इस कारण इसका भाव लगातार बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों की बात करें तो ब्रिटेन में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। क्योंकि पश्चिमी देशों के लोगों की आइसक्रीम पहली पसंद है।

इसके अलावा वनीला का उपयोग मिठाईयां, शराब और परफ्यूम बनाने में भी किया जाता है। अमेरिका और ब्रिटेन की बड़ी आइसक्रीम इंडस्ट्रीयां प्रचूर मात्रा में वनीला की खपत करती है। यह दुनिया की दूसरी सबसे महंगी फसल है। हाल ही के वर्षों में वनीला के भाव में भारी उछाल आया है।

दुनिया का 70% वनीला मेडागास्कर में पैदा किया जाता है। क्योंकि इसकी खेती करना थोड़ा मुश्किल है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में किसानों ने वनीला की खेती जरूर शुरू की है। जिसमें उनको कामयाबी हासिल हुई है। आप भी वनीला की खेती कर करोड़ों कमा सकते हैं।

  • मिट्टी और जलवायु

गर्म जलवायु में वनीला की खेती करना मुश्किल है। इसके लिए ठंडा वातावरण सबसे उत्तम रहता है। चूंकि यह एक बेल के रूप में विकसित होती है, इसलिए ज्यादा बारिश से इसको नुकसान हो सकते है। वनीला की खेती के लिए भुरभरी और दोमट्ट मिट्टी उपयुक्त रहती है।

आजकल ज़्यादातर किसान फसल को धूप से बचाने के लिए शेड बनाकर खेती करते हैं। इन शेडों में फव्वारे फिट किए होते हैं, जिनसे फसल की सिंचाई होती है। वनीला की खेती करने के लिए आपको थोड़ी मेहनत ज्यादा करनी होगी। अगर आप अच्छे तरीके से मेहनत करते हैं तो कुछ ही समय में यह आपकी किस्मत को चमका सकती है।

  • खेत की तैयारी और बिजाई

इसके लिए समतल खेत होना चाहिए, जिसमें बेहतरीन जल निकासी की व्यवस्था हो। जिसमें गोबर की खाद का अच्छे से मिश्रण होना चाहिए। गोबर की खाद को मिलाने के बाद खेत को तीन से चार बार जोत लेना आवश्यक होता है। ऐसा करने से मिट्टी उपजाऊ बनती है।

खेत तैयार होने के बाद आप खेत में बीज की बिजाई कर सकते हैं। इसके अलावा आप वनीला की बेल की कटिंग भी लगा सकते हैं। हमारे सुझाव के अनुसार कटिंग लगाने से पौधे का अच्छे से विकास होता है। कटिंग लगाते समय वातावरण में नमी का विशेष तौर पर ध्यान रखें।

कटिंग लगाते समय पहले गड्ढा बनाया जाता है, फिर उसमें सड़ी-गली गोबर की खाद मिलाई जाती है। कटिंग को ज्यादा गहरी मिट्टी में नहीं लगाना है। इसे बस हल्का सा मिट्टी में लगाकर ऊपर खाद और पत्तों से ढकना है। एक हेक्टेयर में 7000-8000 बेलें लगानी होती है।

  • तार लगाना और सिंचाई करना

बेलों को लगाने के बाद पूरे खेत में जमीन से 5 फीट की ऊंचाई पर तारों को बिछाया जाता है। ताकि जब बेलें विकसित हो तो वनीला की फलियाँ जमीन पर खराब न हो। साथ ही तुड़ाई के समय इससे काफी मदद मिलती है। इसमें बूंद-बूंद सिंचाई विधि से पानी लगाया जाता है। समय-समय पर पानी देते रहने से बेलों का विकास अच्छी तरह से होता है।

वनीला की फसल से 3 वर्ष बाद पैदावार शुरू होती है। जिस पर सुगंधित फूल लगते है, जिसके 9-10 महीनों बाद यह फूल पककर फलियों का रूप ले लेते हैं। जो लंबे-लंबे कैप्सूल की तरह होते हैं। फूल सूख जाने पर खुशबूदार हो जाते हैं। पककर तैयार हुई एक फली में से काफी बीज निकलते हैं।

वनीला को आप भारत की बड़ी फूड कंपनियों को बेच सकते हो। जिसके लिए आपको उनके साथ पहले से संपर्क करना होगा। भारत में भी आइसक्रीम की काफी खपत होती है। जिससे आने वाले वर्षों में भारत वनीला का बड़ा बाजार बन जाएगा। इसके अलावा आप अन्य देशों की कंपनियों के साथ भी बात कर सकते हैं। जो आपकी फसल को खरीदकर अच्छी कीमत देंगे।

निष्कर्ष:

तो दोस्तों ये था सबसे ज्यादा कमाई वाली फसल के नाम और उसके बारे में पूरी जानकारी. हम उम्मीद करते है की आपको ये पोस्ट जरुर अच्छी लगी होगी.

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