रोला छंद की परिभाषा और सरल उदाहरण | Rola Chhand in Hindi

हिंदी साहित्य की विरासत बहुत बड़ी और पुरानी हैं। हिंदी साहित्य में समय समय पर समाज को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग किया हैं। अनेक कवियों और विद्वानों ने हिंदी साहित्यों को आज तक सजग रखा हैं।

दोस्तों आज हम आप रोला छंद के बारे में जानने वाले है, जो कि बोर्ड इग्जाम के लिए बहुत महत्वपूर्ण टॉपिक है। 10वीं क्लास के स्टूडेंट्स के लिए रोला और सोरठा दोनों छंद इतने महत्वपूर्ण है, कि हर बार इग्जाम में इन्हीं छंदों से प्रश्न पुछे जाते हैं।

रोला छन्द हिंदी व्याकरण का महत्वपूर्ण छन्द है, यह छन्द दोहा छन्द का विपरीत छन्द होता है। इस लेख में आप रोला छन्द की परिभाषा तथा रोला छन्द के उदाहरण के बारे में पढ़ने वाले हैं।

वास्तव में छंद हिंदी भाषा में बहुत जरूरी है। इस कारण इनका इतना महत्व है। तो आइए हम रोला छंद की परिभाषा के साथ शुरुआत करते हैं।

छंद क्या है?

rola chhand kya hai

जिस रचना में मात्राओं एवं वर्णों की विशेष व्यवस्था होती है, संगीतात्मकता लयात्मकता होती है, छंद कहलाती है।

अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रागणना तथा यति-गति से संबद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्यरचना ’छंद’ (chhand) कहलाती है। ’छंद’ की प्रथम चर्चा ’ऋग्वेद’ में हुई है। यदि गद्य का नियामक व्याकरण है, तो कविता का छंदशास्त्र।

छंद पद्य की रचना का मानक है और इसी के अनुसार पद्य की सृष्टि होती है। पद्यरचना का समुचित ज्ञान ’छंदशास्त्र’ का अध्ययन किए बिना नहीं होता।

छंद हृदय की सौदर्यभावना जागरित करते है। छंदोबद्ध कथन में एक विचित्र प्रकार का आह्लाद रहता है, जो आप ही जगता है। तुक छंद का प्राण है- यही हमारी आनंद-भावना को प्रेरित करती है।

गद्य में शुष्कता रहती है और छंद में भाव की तरलता। यही कारण है कि गद्य की अपेक्षा छंदोबद्ध पद्य हमें अधिक आनंद देता है। जैसा कि आप जानते है कि छंदोमयी रचना को पद्य कहते हैं और छंदोविहीन रचना को गद्य।

पद्य या छंदोमयी रचना अनेक चरणा में विभक्त होती है और प्रत्येक चरण में वर्णों या मात्राओं की एक निश्चित संख्या होती है। गद्य या छंदोविहीन रचना अनेक वाक्यों में विभक्त होती है पर इन वाक्यों में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित नहीं होती।

पद्य रचना क्या होती है

उदाहरणार्थ-

धन्य जनम जगती-तल तासू।
पितहि प्रमोद चरति सुनि जासू।।
चारि पदारथ कर-तल ताके।
प्रिय पितु-मात प्रान-सम सके।।

इस रचना में चौपाई छंद के चार चरण है। प्रत्येक में 16-16 मात्राएँ हैं।

रोला छंद की परिभाषा

rola chhand ki paribhasha

रोला छंद की परिभाषा में हमें सबसे पहले मात्रिक छंद के बारे में लिखना होता है। मात्रिक छंद तीन प्रकार का होता है- सममात्रिक छंद, अर्द्ध सममात्रिक और विषम मात्रिक छंद।

रोला एक सममात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के विराम (यति) से 24 मात्राएँ होती है।

  • सममात्रिक छंद- जिन छंदों के चारों चरणों की मात्राएँ या वर्ण एक हो, उसे सममात्रिक छंद कहते हैं। जैसे- चौपाई और रोला छंद।

उदाहरण के लिए-

जीती जीती हुई, जिन्होंने भारत बाजी।

इस तरह से आप इसमें देख सकते हैं, कि विराम से पहले के चरण में 11 मात्राएँ है। जैसे ‘जीती’ शब्द के ‘जी’ में दो मात्रा है। एक ऊपर वाली जो वक्र रेखा वाली है, दूसरी खड़ी रेखा (लघु) मात्रा है।

इस तरह से इसके दूसरे चरण में 13 मात्राएँ है। तो इस तरह से इसमें कुल 24 मात्राएँ है। तो यह एक सममात्रिक छंद है। तो इस तरह से आप समझ गए होंगे।

रोला एक सममात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के विराम (यति) से 24 मात्राएँ होती है।

रोला छंद के उदाहरण

rola chhand ka udaharan

रोला छंद भी सममात्रिक छंद ही है। रोला छंद के चार पद और आठ चरण होते हैं। लेकिन इसका मात्रिक विधान दोहे के विधान का करीब-करीब विपरीत होता है। यानि मात्राओं के अनुसार चरणों की कुल मात्रा 11-13 की होती है।

यानि दोहा का सम चरण रोला छंद का विषम चरण की तरह व्यवहार करता है और उसके विन्यास और अन्य नियम तदनुरूप ही रहते हैं। किन्तु रोला का सम चरण दोहा के विषम चरण की तरह व्यवहार नहीं करता है।

प्राचीन छंद-विद्वानों के अनुसार रोले के भी कई और प्रारूप हैं तथा तदनुरूप उनके चरणों की मात्रिकता भी। लेकिन हम यहाँ इस छंद की मूलभूत और सर्वमान्य अवधारणा को ही प्रमुखता से स्वीकार कर अभ्यासकर्म करेंगे।

यहाँ प्रस्तुत उपरोक्त नियमों को फिलहाल रोला के आधारभूत नियमों की तरह लिया जाय.

रोला छंद के चरणों के विन्यास के मूलभूत नियम –

1. रोला के विषम चरण का संयोजन या विन्यास दोहा के सम चरण की तरह ही होता है,

यानि 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3 तथा चरणांत गुरु लघु या ऽ। या 21

2. रोला के सम चरण का संयोजन 3, 2, 4, 4 या 3, 2, 3, 3, 2 होता है। रोला के सम चरण का अंत दो गुरुओं (ऽऽ या 22) से या दो लघुओं और एक गुरु (।।ऽ या 112) से या एक गुरु और दो लघुओं (ऽ।। या 211) से होता है। साथ ही यह भी ध्यातव्य है कि रोला का सम चरण ऐसे शब्द या शब्द-समूह से प्रारम्भ हो जो प्रारम्भिक त्रिकल का निर्माण करें।

रोला छंद के उदाहरण कुछ इस प्रकार से हैं-

1. उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।

2. नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।

3. उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।

4. नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है।।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा-मंडल है।
बंदीजन खगवृन्द, शेष-फन सिंहासन है।।

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निष्कर्ष:

तो ये था रोला छंद की परिभाषा और सरल उदाहरण, हम आशा करते है की इस आर्टिकल को संपूर्ण पढ़ने के बाद आपको रोला छंद के बारे में पूरी जानकारी मिल गयी होगी.

यदि आपको ये हेल्पफुल लगी तो इसको शेयर अवश्य करें ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोला छंद की डेफिनिशन और example पढ़ने को मिले.

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