स्वर संधि के कितने भेद होते हैं (पूरी जानकारी)

आज के इस आर्टिकल में हम आपको ये बताएँगे की स्वर संधि के कितने भेद होते हैं, यदि आपको जानना है की स्वर संधि क्या होता है और उनके कितने प्रकार है तो इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़े।

यदि बहुत ही आसान शब्दों में आपको बताया जाये की स्वर संधि क्या होता है? तो हम आपको बताना चाहते है की जब दो शब्दों को मिलकर किसी शब्द का निर्माण होता है उसको स्वर संधि बोलते है।

शब्दों की रचना उपसर्ग, प्रत्यय और कुछ शब्दों में उपसर्ग तथा प्रत्यय दोनों लगाकर की जाती है। इसी तरह संधि व समास द्वारा भी शब्द का निर्माण किया जाता है। सबसे पहले यह जानते हैं, कि संधि द्वारा शब्द का निर्माण कैसे होता है।

निम्नलिखित शब्दों को ध्यान से पढिए-

  1. सत्य + अर्थ = सत्यार्थ, (अ + अ = आ)
  2. महा + ईश = महेश, (आ + ई = ए)
  3. पर + उपकार = परोपकार, (अ + उ = ओ)
  4. सदा + एव = सदैव (आ + ए = ऐ)

उपर्युक्त पहले उदाहरण में सत्य + अर्थ के मेल से एक नया शब्द बना- सत्यार्थ। यहाँ ‘सत्य’ के अंतिम स्वर ‘अ’ तथा ‘अर्थ’ के आरंभिक स्वर ‘अ’ का मेल होने से एक नयी ध्वनि ‘आ’ बनी है।

दूसरे उदाहरण में ‘महा’ + ‘ईश’ के मेल से एक नया शब्द बना- ‘महेश’। यहाँ ‘महा’ के अंतिम स्वर ‘आ’ तथा ‘उपकार’ के आरंभिक स्वर ‘उ’ का मेल होने से एक नयी ध्वनि ‘ए’ बनी है।

तीसरे उदाहरण में ‘पर’ + ‘उपकार’ के मेल से एक नया शब्द बना- ‘परोपकार’। यहाँ ‘पर’ के अंतिम स्वर ‘अ’ तथा ‘ईश’ के आरंभिक स्वर ‘ई’ का मेल होने से एक नयी ध्वनि ‘ओ’ बनी है।

चौथे उदाहरण में ‘सदा’ + ‘एव’ के मेल से एक नया शब्द बना- ‘सदैव’। यहाँ ‘सदा’ के अंतिम स्वर ‘आ’ तथा ‘एव’ के आरंभिक स्वर ‘ए’ का मेल होने से एक नयी ध्वनि- ‘ऐ’ बनी है।

इस तरह एक शब्द के अंत की ध्वनि और साथ में मिलने वाले शब्द की आरंभिक ध्वनि में संधि होती है। अतः जब दो ध्वनियाँ आपस में मिलती हैं, तब वे एक नया रूप ग्रहण करती है। इस प्रक्रिया को संधि कहते हैं।

संधिविच्छेद कैसे होता है?

निम्नलिखित शब्दों को ध्यान से पढिए-

  1. सत्य + अर्थ = सत्यार्थ, (अ + अ = आ)
  2. महा + ईश = महेश, (आ + ई = ए)
  3. पर + उपकार = परोपकार, (अ + उ = ओ)
  4. सदा + एव = सदैव (आ + ए = ऐ)

ऊपर के उदाहरणों में दो वर्णों अथवा ध्वनियों के मेल से संधि की गई थी। किन्तु इन उदाहरणों में संधि के नियमों को हटाकर वर्णों को फिर पहली अवस्था में लाया गया है।

अतः दो वर्णों अथवा ध्वनियों के मेल से जो एक शब्द बनता है, उसे दुबारा से पहली वाली स्थिति में ले आना संधिविच्छेद कहलाता है।

संधि के कितने भेद होते हैं?

sandhi ke kitne bhed hote hai

वर्णों में संधि करने पर स्वर, व्यंजन अथवा विसर्ग में बदलाव आ जाता है। अतः संधि तीन प्रकार की होती है। तो संधि के तीन भेद होते हैं-

  1. स्वर संधि
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

1. स्वर संधि

हिम + आलय = हिमालय : इसमें ‘हिम’ के अंतिम स्वर ‘अ’ तथा ‘आलय’ के आरंभिक स्वर ‘आ’ स्वरों का मेल (अ + आ) हुआ है और एक नई ध्वनि ‘आ’ बनी है। अतः स्वरों का स्वरों के साथ मेल होने पर उनमें जो परिवर्तन आता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। यह संधि का पहला भेद है।

2. व्यंजन संधि

जगत् + नाथ = जगन्नाथ : इसमें ‘जगत्’ के अंतिम ‘त्’ और ‘नाथ’ के आरंभिक ‘न’ अर्थात दो व्यंजनों ‘त्’ + ‘न’ की संधि से ‘न्न’ एक नया रूप बना है।

जगत् + ईश = जगदीश : इसमें एक व्यंजन ‘जगत्’ के अंतिम ‘त्’ तथा एक स्वर ‘ईश’ के आरंभिक ‘ई’ की संधि से ‘दी’ नामक एक नया रूप बना है।

अतः व्यंजन और व्यंजन अथवा स्वर और व्यंजन के मेल से व्यंजन में जो परिवर्तन आता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं। यह संधि का दूसरा भेद है।

विशेष:- ‘त्’ के बाद कवर्ग, तवर्ग, पवर्ग के तीसरे, चौथे वर्ण, ‘य’, ‘र’, ‘व’ या कोई स्वर आ जाए तो ‘त्’ का ‘द्’ हो जाता है।

3. विसर्ग संधि

निः + धन = निर्धन: यहाँ ‘निः’ के अंत में विसर्ग (:) का मेल ‘धन’ के आदि में ‘ध’ के साथ होने पर ‘र्ध’ एक नया रूप बन जाता है।

निः + आशा = निराशा: यहाँ ‘निः’ के अंत में विसर्ग (:) का मेल ‘आशा’ के आदि में ‘आ’ स्वर के साथ होने पर ‘रा’ एक नया रूप बन जाता है।

अतः विसर्ग का मेल किसी स्वर या व्यंजन के साथ होने पर विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं। यह संधि का तीसरा भेद है।

स्वर संधि के कितने भेद होते हैं?

swar sandhi ke kitne bhed hote hai

सत्य + आग्रह = सत्याग्रह, (अ + आ = आ)

उपर्युक्त उदाहरण में ‘सत्य’ के अंत में ‘अ’ स्वर निहित है और ‘आग्रह’ के आरंभ में ‘आ’ स्वर है। इन दोनों स्वरों अर्थात ‘अ’ और ‘आ’ को मिलाने से ‘दीर्घ आ’ हो गया और ‘सत्य + आग्रह’ में संधि करने पर उसमें परिवर्तन होकर ‘सत्याग्रह’ शब्द बना।

अतः स्वर के बाद स्वर के मेल से जो उनमें परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। स्वर संधि के पाँच भेद है-

  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. वृद्धि संधि
  4. यण संधि
  5. अयादी संधि

1. दीर्घ संधि

(क) उदाहरण-

मत + अनुसार = मतानुसार, (अ + अ = आ)

दीर्घ का अर्थ है- बड़ा। इस संधि में जब दो एक समान वर्ण (ह्नस्व या दीर्घ) पास-पास आते हैं, तो दोनों मिलकर उसी वर्ण का दीर्घ रूप बन जाते हैं। इसे दीर्घ संधि कहते हैं।

अन्य उदाहरण-

  • परम + अणु = परमाणु (अ + अ = आ)
  • छात्र + आवास = छात्रावास (अ + आ = आ)
  • परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी (आ + अ = आ)
  • चिकित्सा + आलय = चिकित्सालय (आ + आ = आ)

याद रखने योग्य-

  • पूर्व स्वर = अ या आ
  • पर स्वर = अ या आ
  • आदेश = आ

(ख) उदाहरण

रवि + इन्द्र = रवीन्द्र, (इ + इ = ई)

अन्य उदाहरण-

  • अति + इव = अतीव (इ + इ = ई)
  • प्रति + ईक्षा = प्रतीक्षा (इ + ई = ई)
  • नारी + इच्छा = नारीच्छा (ई + इ = ई)
  • रजनी + ईश = रजनीश (ई + ई = ई)

याद रखने योग्य-

  • पूर्व स्वर = इ या ई
  • पर स्वर = इ या ई
  • आदेश = ई

(ग) उदाहरण

सु + उक्ति = सूक्ति, (उ + उ = ऊ)

अन्य उदाहरण-

  • गुरु + उपदेश = गुरूपदेश (उ + उ = ऊ)
  • सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि (उ + ऊ = ऊ)
  • वधू + उत्सव = वधूत्सव (ऊ + उ = ऊ)
  • सरयू + ऊर्मि = सरयूर्मि (ऊ + ऊ = ऊ)

याद रखने योग्य-

  • पूर्व स्वर = उ या ऊ
  • पर स्वर = उ या ऊ
  • आदेश = ऊ

2. गुण संधि

(क) उदाहरण-

सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र, (अ + इ = ए)

अतः ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’ आ जाए तो दोनों को मिलाकर ‘ए’ हो जाता है। इसे ही गुण संधि कहते हैं।

अन्य उदाहरण-

  • वीर + इन्द्र = वीरेन्द्र, (अ + इ = ए)
  • नर + ईश = नरेश, (अ + ई = ए)
  • यथा + इष्ट = यथेष्ट (आ + ई = ए)
  • रमा + ईश = रमेश (आ +ई = ए)

याद रखने योग्य-

  • पूर्व स्वर = अ या आ
  • पर स्वर = इ या ई
  • आदेश = ए

(ख) उदाहरण

वीर + उचित = वीरोचित (अ + उ = ओ)

अतः ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘उ’ या ‘ऊ’ आ जाए तो दोनों को मिलाकर ‘ओ’ हो जाता है।

अन्य उदाहरण-

  • सर्व + उदय = सर्वोदय (अ + उ = ओ)
  • जल + ऊर्मि = जलोर्म (अ + ऊ = ओ)
  • महा + उत्सव = महोत्सव (आ +उ = ओ)
  • गंगा + ऊर्मि = गंगोि (आ + ऊ = ओ)

याद रखने योग्य :

  • पूर्व स्वर = अ या आ
  • पर स्वर = उ या ऊ
  • आदेश = ओ

(ग) उदाहरण

देव + ऋषि = देवर्षि, (अ + ऋ = अर्)

अतः ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ऋ’ आ जाए तो दोनों को मिलाकर ‘अर्’ हो जाता है ।

अन्य उदाहरण-

  • सप्त + ऋषि = सप्तर्षि (अ + ऋ = अर्)
  • वसन्त + ऋतु = वसन्तर्तु (अ + ऋ = अर्)
  • महा + ऋषि = महर्षि (आ + ऋ = अर्)

याद रखने योग्य :

  • पूर्व स्वर = अ या आ
  • पर स्वर = ऋ
  • आदेश = अर्

3. वृद्धि संधि

(क) उदाहरण-

मत + ऐक्य = मतैक्य, (अ + ऐ = ऐ)

अतः ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ आ जाएँ तो दोनों को मिलाकर ‘ऐ’ हो जाता है।

अन्य उदाहरण-

  • लोक + एषणा = लोकैषणा (अ + ए = ऐ)
  • परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य (अ + ऐ = ऐ)
  • तथा + एव = तथैव (आ + ए = ऐ)
  • महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य (आ + ऐ = ऐ)

याद रखने योग्य :

  • पूर्व स्वर = अ या आ
  • पर स्वर = ए या ऐ
  • आदेश = ऐ

(ख) उदाहरण-

दन्त + ओष्ठ =दन्तौष्ठ (अ +ओ = औ)

अतः ‘अ’ या ‘आ’ से परे यदि ‘ओ’ या ‘औ’ आ जाएँ तो दोनों को मिलाकर ‘औ’ हो जाता है।

अन्य उदाहरण

  • अधर + ओष्ठ = अधरौष्ठ (अ + ओ = औ)
  • महा + ओज = महौज (आ + ओ = औ)
  • परम + औषध = परमौषध (अ + औ = औ)
  • महा + औषध = महौषध (आ + औ = औ)

याद रखने योग्य :

  • पूर्व स्वर = अ या आ
  • पर स्वर = ओ या औ
  • आदेश = औ

4. यण संधि

(क) उदाहरण-

अति + आचार = अत्याचार, (इ + आ = या)

उपर्युक्त उदाहरण में ‘इ’ के बाद ‘आ’ भिन्न स्वर है, इसलिए पहले ‘इ’ को ‘य्’ हुआ और फिर ‘य्’ में भिन्न स्वर ‘आ’ की मात्रा जुड़ने से ‘या’ हुआ। इसके साथ ही ‘अति’ के ‘ति’ में से ‘इ’ स्वर के ‘आ’ भिन्न स्वर में मिलने से शेष ‘त्’ (हलन्त अर्थात आधा) रह गया।

अतः अति + आचार में संधि होकर शब्द बना – अत्याचार।

एक और उदाहरण देखिए-

नदी + अर्पण = नद्यर्पण, (ई + अ = य), यहाँ (ई को य् +अ = य)

उपर्युक्त उदाहरण में ‘ई’ के बाद ‘अ’ भिन्न स्वर है, इसलिए पहले ‘ई’ को ‘य्’ हो गया और फिर ‘य्’ में भिन्न स्वर ‘अ’ जुड़ने से ‘य’ हो गया। इसके साथ ही ‘नदी’ के ‘दी’ में से ‘ई’ स्वर के ‘अ’ भिन्न स्वर में मिलने से शेष ‘द्’ (हलंत अर्थात आधा) रह गया ।

अतः नदी + अर्पण में संधि होकर शब्द बना- नद्यर्पण |

अतः ‘इ’, ‘ई’ के बाद कोई भिन्न स्वर होने पर ‘इ/ई’ को ‘य्’ हो जाता है और साथ में भिन्न स्वर की मात्रा जुड़ जाती है और यदि भिन्न स्वर ‘अ’ हो तो वह ‘य्’ के साथ जुड़कर ‘य’ बन जाता है क्योंकि ‘अ’ की कोई मात्रा नहीं होती। इसके साथ ही जिस व्यंजन से ‘इ’ या ‘ई’ स्वर निकल जाता है, वह व्यंजन आधा रह जाता है।

अन्य उदाहरण

  • अति + अधिक = अत्यधिक (इ + अ = य)
  • अभि + आगत = अभ्यागत (इ + आ = या)
  • प्रति + एक = प्रत्येक (इ + ए = ये)
  • प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर (इ + उ = यु)

याद रखने योग्य :

  • पूर्व स्वर = इ या ई
  • पर स्वर = इ या ई से भिन्न कोई स्वर
  • आदेश = य् + भिन्न स्वर

(ख) उदाहरण-

सु + आगत = स्वागत, (उ + आ = वा), यहाँ (उ को व् + आ = वा)

उपर्युक्त उदाहरण में ‘उ’ के बाद ‘आ’ भिन्न स्वर है, इसलिए पहले ‘उ’ को ‘व्’ हुआ और फिर ‘व्’ में भिन्न स्वर ‘आ’ की मात्रा (1) जुड़ने से ‘वा’ हुआ। इसके साथ ही ‘सु’ में से ‘उ’ स्वर के ‘आ’ भिन्न स्वर में मिलने से शेष ‘स्’ (हलन्त अर्थात आधा) रह गया।

अतः सु + आगत में संधि होकर शब्द बना स्वागत ।

एक और उदाहरण देखिए –

वधू + अनुसार = वध्वनुसार, (ऊ + अ = व), यहाँ (ऊ को व् +अ = व)

उपर्युक्त उदाहरण में ‘ऊ’ के बाद ‘अ’ भिन्न स्वर है, इसलिए पहले ‘ऊ’ को ‘व्’ हो गया और फिर ‘व्’ में भिन्न स्वर ‘अ’ जुड़ने से ‘व’ हो गया। इसके साथ ही ‘वधू’ के अंतिम स्वर ‘ऊ’ के ‘ अनुसार’ शब्द के आरम्भिक ‘अ’ भिन्न स्वर में मिलने से शेष ‘ध्’ (हलंत अर्थात आधा)
रह गया।

अतः वधू + अनुसार में संधि होकर शब्द बना- वध्वनुसार।

अतः ‘उ’, ‘ऊ’ के बाद कोई भिन्न स्वर होने पर ‘उ’/ऊ’ को ‘व्’ हो जाता है और साथ में भिन्न स्वर की मात्रा जुड़ जाती है और यदि भिन्न स्वर ‘अ’ हो तो वह ‘व्’ के साथ जुड़कर ‘व’ बन जाता है क्योंकि ‘अ’ की कोई मात्रा नहीं होती। इसके साथ ही जिस व्यंजन से ‘उ’ या ‘ऊ’ स्वर निकल जाता है, वह व्यंजन आधा रह जाता है।

अन्य उदाहरण-

  • सु + अल्प = स्वल्प (उ + अ = व)
  • गुरु + आज्ञा= गुर्वाज्ञा (उ + आ = वा)
  • अनु + इति = अन्विति (उ + इ = वि)
  • अनु + एषण = अन्वेषण (उ + ए = वे)

याद रखने योग्य :

  • पूर्व स्वर = उ या ऊ
  • पर स्वर = उ या ऊ से भिन्न स्वर
  • आदेश = व् + भिन्न स्वर

(ग) उदाहरण-

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा, (ऋ + आ =रा), यहाँ (ऋ को र् + आ = रा तथा त् + रा= त्रा)

यहाँ ‘ऋ’ के बाद ‘आ’ भिन्न स्वर है, अतः ‘ऋ’ को ‘र्’ हो गया और फिर ‘र्’ में भिन्न स्वर ‘आ’ की मात्रा जुड़ने से ‘रा’ हो गया। ‘पितृ’ शब्द के अंतिम भाग ‘तृ’ में ‘ऋ’ स्वर के हटने से ‘त्’ रह गया और फिर इस ‘त्’ में ‘रा’ जुड़ने से ‘त्रा’ बना।

एक और उदाहरण देखिए-

पितृ + अर्पण = पित्रर्पण, (ऋ + अ = र), यहाँ (ऋ को र् + अ = ‘र’ तथा त् + र = त्र)

यहाँ ‘ऋ’ के बाद ‘अ’ भिन्न स्वर है, अतः यहाँ ‘ऋ’ को ‘र्’ हो गया, फिर ‘र्’ में भिन्न स्वर ‘अ’ के मिलने से ‘र’ हो गया। ‘पितृ’ के अंतिम ‘तृ’ में ‘ऋ’ स्वर के हटने से ‘त्’ रह गया। तत्पश्चात त्र मिलकर ‘त्र’ हुए।

अतः ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर होने पर ‘ऋ’ को ‘र्’ हो जाता है और साथ में भिन्न स्वर की मात्रा जुड़ जाती है। यदि भिन्न स्वर ‘अ’ हो तो वह ‘ऋ’ के साथ जुड़कर ‘र’ बन जाता है क्योंकि ‘अ’ की मात्रा नहीं होती। इसके साथ ही जिस व्यंजन से ‘ऋ’ स्वर निकल जाता है, वह व्यंजन आधा रह जाता है।

अन्य उदाहरण-

  • मातृ + अनुमति = मात्रनुमति (ऋ + अ = र)
  • पितृ + आदेश = पित्रादेश (ऋ + आ = रा)
    पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश (ऋ + उ = रु)
  • मातृ + ईश = मात्रीश (ऋ + ई = री)

याद रखने योग्य :

  • पूर्व स्वर= ऋ
  • पर स्वर = ऋ से भिन्न स्वर
  • आदेश = ‘र्’ भिन्न स्वर

5. अयादि संधि

(क) उदाहरण-

ने + अन = नयन, (ए + अ = अय), यहाँ (ए को अय् + अ = अय)

यहाँ ‘ए’ के बाद भिन्न स्वर ‘अ’ है अतः ‘ए’ को ‘अय्’ हो गया और फिर ‘अय्’ में भिन्न स्वर ‘अ’ जुड़ने से ‘अय’ हो गया। इस प्रकार शब्द बना-नयन। अतः ‘ए’ के बाद कोई भिन्न स्वर हो तो ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’ हो जाता है और साथ में भिन्न स्वर जुड़ जाता है।

अन्य उदाहरण-

  • चे + अन = चयन (ए + अ = अय)
  • शे + अन = शयन (ए + अ = अय)

याद रखने योग्य

  • पूर्व स्वर = ए
  • पर स्वर = ए से भिन्न स्वर
  • आदेश = अय् + भिन्न स्वर

(ख) उदाहरण

नै + इका = नायिका (ऐ + इ = आयि), यहाँ (ऐ को आय् + इ = आयि)

यहाँ ‘ऐ’ के बाद भिन्न स्वर ‘इ’ है अतः ‘ऐ’ को ‘आय्’ हो गया और फिर ‘आय्’ में भिन्न स्वर ‘इ’ की मात्रा जुड़ने से ‘आयि’ हो गया। इस प्रकार शब्द बना- नायिका।

एक और उदाहरण देखिए-

नै + अक = नायक, (ऐ + अ = आय), यहाँ (ऐ को आय् + अ = आय)

यहाँ ‘ऐ’ के बाद भिन्न स्वर ‘अ’ है अतः ‘ऐ’ को ‘आय्’ हो गया और फिर ‘आय्’ में भिन्न स्वर ‘अ’ जुड़ने से ‘आय’ हो गया। इस प्रकार शब्द बना- नायक। अतः ‘ऐ’ के बाद कोई भिन्न स्वर हो तो ‘ऐ’ के स्थान पर ‘ आय्’ हो जाता है और साथ में भिन्न स्वर की मात्रा जुड़ जाती है।

यदि भिन्न स्वर ‘अ’ हो तो वह ‘आय्’ के साथ जुड़कर ‘आय’ बन जाता है क्योंकि ‘अ’ की कोई मात्रा नहीं होती।

अन्य उदाहरण-

  • गै + इका = गायिका (ऐ + इ = आयि)
  • गै + अन = गायन (ऐ + अ = आय)

याद रखने योग्य :

  • पूर्व स्वर = ऐ
  • पर स्वर = ऐ से भिन्न स्वर
  • आदेश = आय् + भिन्न स्वर

(ग) उदाहरण

पो + इत्र = पवित्र, (ओ + इ = अवि), यहाँ (ओ को अव् + इ = अवि)

यहाँ ‘ओ’ के बाद भिन्न स्वर ‘इ’ है अतः ‘ओ’ को ‘अव्’ हो गया और फिर ‘ अव्’ में भिन्न स्वर ‘इ’ जुड़ने से ‘अवि’ हो गया। इस प्रकार शब्द बना- पवित्र।

एक और उदाहरण देखिए:

पो + अन = पवन, (ओ+ अ = अव), यहाँ (ओ को अव् + अ = अव )

‘ओ’ के बाद भिन्न स्वर ‘अ’ है अतः ‘ओ’ को ‘अव्’ हो गया और फिर ‘अव्’ में भिन्न स्वर ‘अ’ जुड़ने से ‘अव’ हो गया। इस प्रकार शब्द बना- पवन। अतः ‘ओ’ के बाद कोई भिन्न स्वर हो तो ‘ओ’ के स्थान पर ‘अव्’ हो जाता है और साथ में भिन्न स्वर की मात्रा जुड़ जाती है।

यदि भिन्न स्वर ‘अ’ हो तो वह ‘अव्’ के साथ जुड़कर ‘अव’ बन जाता है क्योंकि ‘अ’ की कोई मात्रा नहीं होती।

अन्य उदाहरण-

  • भो + अन = भवन (ओ + अ = अव)
  • हो + अन = हवन (ओ + अ = अव)
  • भो + इष्य = भविष्य (ओ + इ = अवि)

याद रखने योग्य :

  • पूर्व स्वर = ओ
  • पर स्वर = ओ से भिन्न स्वर
  • आदेश = अव् + भिन्न स्वर

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निष्कर्ष:

तो ये था स्वर संधि के कितने भेद होते है, हम उम्मीद करते है की इस आर्टिकल को संपूर्ण पढ़ने के बाद आपको स्वर संधि के बारे में पूरी जानकारी मिल गयी होगी।

यदि आपको ये आर्टिकल हेल्पफुल लगी तो इसको शेयर जरूर करें ताकि अधिक से अधिक लोगों को स्वर संधि के भेद और प्रकार के बारे में सही जानकारी मिल पाए।

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