15 अगस्त 1947 को आजादी का जश्न मनाने के पीछे हजारों उत्साही भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये भयंकर विद्रोहों, युद्धों और आंदोलनों का बहुत हिंसक और अराजक इतिहास है।
भारत के इन सभी स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के प्रयास में संघर्ष किया, अपना खून बहाया और यहां तक कि अपने जीवन का बलिदान भी दिया।
भारत में विदेशी साम्राज्यवादियों के शासन और उनके उपनिवेशवाद को समाप्त करने के लिए, विविध पारिवारिक पृष्ठभूमि से बड़ी संख्या में क्रांतिकारी और कार्यकर्ता एक साथ आए और एक मिशन पर निकल पड़े।
हममें से कई लोगों ने उनमें से कुछ के बारे में सुना होगा, लेकिन ऐसे कई प्रमुख नायक हैं जिनके योगदान का जश्न नहीं मनाया गया है। उस समय लोगों को एक साथ लेकर आना काफी मुश्किल था।
लेकिन क्रांतिकारियों के अटूट विश्वास और हिम्मत ने पूरे भारत को इकट्ठा किया। इसमें कहीं न कहीं खून खोलने वाले क्रांतिकारी नारों का भी हाथ था। ये नारे आज भी हर भारतीय के रौंगटे खड़े कर देते हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन में नारों की भूमिका
नारे सामाजिक आंदोलनों के लिए बहुत प्रभावी हथियार हैं। इनमें असंख्य लोगों की भावनाओं को जगाने, उत्तेजित करने और आन्दोलित करने की शक्ति है। जब लोग सैकड़ों-हजारों या लाखों की संख्या में एकत्रित होते हैं तो वे अपनी भावनाओं को अत्यंत भावुक भाषा में व्यक्त करते हैं।
वहां मौजूद आम लोग, जिनका उस आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं होता, वे भी उनके साथ नारे लगाने लगते हैं या उनकी भावनाओं का समर्थन करने लगते हैं। जो लोग समर्थक या आंदोलनकारी हैं, वे नारे सुनते ही तूफ़ान बन जाते हैं और कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।
हमारे क्रांतिकारी नायकों द्वारा दिये गये नारों ने भी भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाई। जब सुभाष चंद्र बोस ने नारा दिया – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” तब इस नारे को सुनकर हमारे देश के अनगिनत पुरुषों और महिलाओं ने अपनी संपत्ति और यहां तक कि अपने जीवन का बलिदान दिया।
महात्मा गांधी ने नारा दिया – “करो या मरो”। इस नारे ने भारतीयों को अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए प्रेरित किया। नारा लेखन की एक अत्यंत महत्वपूर्ण विशेषता है। यह दो या चार पंक्तियों का होना चाहिए, ताकि यह लोगों की मेमोरी पर अमिट छाप छोड़ सके।
20+ क्रांतिकारी नारे जिसने भारत को आजादी दिलाई
भारत का इतिहास उन महान हस्तियों से भरा पड़ा है जिन्हें उनके उत्कृष्ट योगदान और बलिदान के लिए याद किया जाता है। इन महापुरुषों के नाम और उनके नारे भारत की संस्कृति, धर्म, स्वतंत्रता संग्राम और विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान के आधार पर जाने जाते हैं।
कुछ महापुरुषों के नाम शामिल हैं – महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, रवीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानन्द, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर, लाल बहादुर शास्त्री, अब्दुल कलाम आदि।
अगर आप भारतीय हैं तो आपने कभी न कभी भारतीय महापुरुषों के ये क्रांतिकारी नारे जरूर सुने होंगे।
क्र. सं. | क्रांतिकारी नारे | द्वारा दिए गए थे |
1. | साइमन कमीशन वापस जाओ | लाला लाजपत राय |
2. | मेरे सिर पर लाठी का एक-एक प्रहार, अंग्रेजी शासन के ताबूत की कील साबित होगा | |
3. | स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा | बाल गंगाधर तिलक |
4. | सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा | अल्लामा इक़बाल |
5. | विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा | श्याम लाल गुप्ता पार्षद |
6. | सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है | राम प्रसाद बिस्मिल |
7. | साम्राज्यवाद का नाश हो | भगत सिंह |
8. | इंकलाब जिंदाबाद | |
9. | कर मत दो | सरदार वल्लभ भाई पटेल |
10. | सम्पूर्ण क्रांति | जयप्रकाश नारायण |
11. | मारो फिरंगी को | मंगल पांडे |
12. | जय जगत | विनोबा भावे |
13. | वेदों की और लौटे | स्वामी दयानंद सरस्वती |
14. | हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान | भारतेंदु हरिश्चंद्र |
15. | Who Lives If India Dies | पण्डित जवाहर लाल नेहरू |
16. | आराम हराम है | |
17. | करो या मरो | महात्मा गांधी |
18. | भारत छोड़ो | |
19. | हे राम | |
20. | जय हिन्द | आबिद हसन सफ़रानी |
21. | दिल्ली चलो | सुभाष चन्द्र बोस |
22. | तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा |
1. साइमन कमीशन वापस जाओ (लाला लाजपत राय)
“साइमन कमीशन गो बैक” का नारा लाला लाजपत राय ने 1927 में दिया था। इसके विरोध में हुए लाठीचार्ज में घायल होने के बाद 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई।
1927 में, ब्रिटिश टोरी सरकार ने, भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन के जवाब में, एक वैधानिक आयोग का गठन किया जिसे साइमन कमीशन के नाम से जाना जाता है। इस आयोग के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे।
इस आयोग का कार्य भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यप्रणाली का अध्ययन करना और उसके अनुसार सुझाव देना था। इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। भारत में इसका विरोध किया गया क्योंकि इस आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था। सभी सदस्य अंग्रेज थे।
1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुंचा तो उसका स्वागत “साइमन कमीशन वापस जाओ” के नारों के साथ किया गया। कांग्रेस और मुस्लिम लीग सभी पार्टियों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
लाला लाजपत राय ने पंजाब में इस आयोग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। पुलिस ने उन पर इतनी लाठियां बरसायीं कि उनकी इसी तरह मौत हो गयी।
2. मेरे सिर पर लाठी का एक-एक प्रहार, अंग्रेजी शासन के ताबूत की कील साबित होगा (लाला लाजपत राय)
लाठीचार्ज में घायल होने के बाद 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। इसी लाठीचार्ज के दौरान उन्होंने यह नारा दिया था।
3. स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा (बाल गंगाधर तिलक)
यह नारा देश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने दिया था, उन्होंने ब्रिटिश सरकार को देश छोड़ने के लिए पूरी तरह मजबूर कर दिया था। बाल गंगाधर तिलक एक प्रसिद्ध वकील, शिक्षक, समाज सुधारक और राष्ट्रवादी व्यक्ति थे।
बाद में लोगों ने उन्हें लोकमान्य की उपाधि भी दी। बाल गंगाधर तिलक पहले नेता थे, जिन्होंने ब्रिटिश काल में पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की और नारा दिया कि “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा”।
उनका नारा बहुत लोकप्रिय हुआ और देश के युवाओं को आकर्षित किया, जिसके बाद लाखों युवाओं ने इस नारे को हकीकत में बदल दिया और देश को आजाद कराने में सफल रहे।
4. सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा (अल्लामा इक़बाल)
सारे जहाँ से अच्छा या तराना-ए-हिन्दी उर्दू भाषा में लिखी देशभक्ति की एक ग़ज़ल है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश राज के विरोध का प्रतीक बन गई और जिसे आज भी भारत में देशभक्ति गीत के रूप में गाया जाता है।
इसे भारत के राष्ट्रीय गीत का अनौपचारिक दर्जा प्राप्त है। यह गीत प्रसिद्ध कवि मुहम्मद इकबाल द्वारा 1905 में लिखा गया था और पहली बार लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में सुनाया गया था।
यह इक़बाल की रचना बंग-ए-दारा में शामिल है। उस समय इक़बाल लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में लेक्चरर थे। उन्हें लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया था। इकबाल ने भाषण देने की बजाय पूरे जोश के साथ यह गजल पढ़ी।
यह ग़ज़ल भारत की प्रशंसा में लिखी गई है और विभिन्न समुदायों के लोगों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती है। सितार वादक पंडित रविशंकर ने 1950 के दशक में इसे संगीत में स्थापित किया।
5. विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा (श्याम लाल गुप्ता पार्षद)
1938 के कांग्रेस अधिवेशन में “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा” नामक प्रसिद्ध झंडा गीत स्वीकार किया गया। इस गीत को रचने वाले श्यामलाल गुप्ता ‘पार्षद’ नरवल, कानपुर के रहने वाले थे।
उनका जन्म 16 सितम्बर 1893 को एक गरीब परिवार में हुआ था। उन्होंने गरीबी में भी उच्च शिक्षा हासिल की थी।
6. सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है (राम प्रसाद बिस्मिल)
काकोरी कांड के नायक शहीद राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को हुआ था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में हुआ था और उन्हें 19 दिसंबर 1927 को यूपी की गोरखपुर जेल में मैनपुरी षड्यंत्र के आरोप में फाँसी दे दी गई थी।
वह राम प्रसाद बिस्मिल ही थे जिन्होंने देश को ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ जैसा जोशीला नारा दिया था। बाद में इस नारे के आधार पर कई देशभक्ति फिल्मों में गाने बनाये गये।
राम प्रसाद बिस्मिल का नारा पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया और उनके बलिदान की कहानियाँ उनके विषयों में बच्चों को पढ़ाई जाने लगीं।
7. साम्राज्यवाद का नाश हो (भगत सिंह)
सरदार भगत सिंह का नाम छोटे से लेकर बड़े से बड़ा व्यक्ति भी जानता है, क्योंकि उनका नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप में लिया जाता है। उनका पैतृक गांव खटकर कलां है जो भारत के पंजाब में स्थित है।
उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह सिन्धु और माता का नाम श्रीमती विद्यावती था। भगत सिंह जी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता, क्योंकि उनके द्वारा किये गये बलिदान को कोई नहीं माप सकता। भगत सिंह को केवल 23 वर्ष की उम्र में फाँसी दे दी गई थी।
उन्होंने 2 प्रमुख नारे “इंकलाब जिंदाबाद” और “साम्राज्यवाद का नाश हो” लगाए थे।
8. इंकलाब जिंदाबाद (भगत सिंह)
मात्र 23 साल की उम्र में उन्होंने अपने देश, अपने परिवार और अपनी जवानी की खुशियों के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया, ऐसा उन्होंने देश की जनता के लिए किया। सरदार भगत सिंह का जीवन हर युवा के लिए एक प्रेरणा है।
9. कर मत दो (सरदार वल्लभ भाई पटेल)
सरदार पटेल और महात्मा गांधी सहित अन्य लोगों ने “कर मत दो” नारे के साथ किसानों का समर्थन किया और पटेल ने “कर मत दो” का नारा दिया और अंततः ब्रिटिश सरकार को यह मांग स्वीकार करनी पड़ी।
10. सम्पूर्ण क्रांति (जयप्रकाश नारायण)
“संपूर्ण क्रांति” का नारा वर्ष 1974 में जयप्रकाश नारायण ने दिया था।
11. मारो फिरंगी को (मंगल पांडे)
“मारो फिरंगी को” का नारा मंगल पांडे ने दिया था। मारो फिरंगी को का नारा मंगल पांडे ने 1857 के विद्रोह की शुरुआत में दिया था। यह वो समय था जब अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत हुई थी।
हालांकि यह विद्रोह कामयाब नहीं हो सका, लेकिन इसने करोड़ों भारतीयों को एक साथ लाने का काम किया था। इस विद्रोह में मुख्य भूमिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने निभाई थी।
12. जय जगत (विनोबा भावे)
विनोबा भावे महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गांधीजी को अपना राजनीतिक और आध्यात्मिक गुरु बनाया। समय के साथ गुरु-शिष्य की जोड़ी मजबूत होती गई और दोनों ने मिलकर कई आंदोलनों को अंजाम दिया।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में उन्होंने 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और देशवासियों से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने की अपील की। इसी दौरान उन्होंने “जय जगत” का नारा दिया था।
13. वेदों की और लौटो (स्वामी दयानंद सरस्वती)
“वेदों की ओर लौटो” का नारा आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती ने दिया था। उन्होंने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक ग्रन्थ की रचना भी की थी। दयानंद सरस्वती (1824-1883) आधुनिक भारत के विचारक और आर्य समाज के संस्थापक थे।
उनके बचपन का नाम ‘मूलशंकर’ था। वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। ‘वेदों की ओर लौटो’ उनका प्रमुख नारा था। उन्होंने कर्म सिद्धांत, पुनर्जन्म और त्याग को अपने दर्शन का आधार बनाया।
उन्होंने ही सबसे पहले 1876 में ‘स्वराज’ का नारा दिया था, जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। प्रथम जनगणना के समय स्वामी जी ने आगरा से देश के सभी आर्य समाजों को निर्देश भेजा कि सभी सदस्य अपना धर्म ‘सनातन धर्म’ लिखें।
14. हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान (भारतेंदु हरिश्चंद्र)
हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान का नारा भारतेंदु हरिश्चंद्र ने दिया था। यह एक क्रांतिकारी नारा था, जिसने लाखों लोगों को अपने देश से जुड़ने के लिए प्रेरित किया।
15. Who Lives If India Dies (पण्डित जवाहर लाल नेहरू)
“Who Lives If India Dies” का नारा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे। भारत को आज़ादी दिलाने में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रमुख भूमिका निभाई।
उनका जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद शहर यानि आज के प्रयागराज में हुआ था। जवाहरलाल नेहरू के पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था, जो एक कश्मीरी पंडित थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अध्यक्ष थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू अपने तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े थे।
16. आराम हराम है (पण्डित जवाहर लाल नेहरू)
“आराम हराम है” का नारा स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दिया था। उनका मानना था कि मेहनत और परिश्रम से मिलने वाला फल सबसे अच्छा और मीठा होता है।
इस नारे के माध्यम से जवाहरलाल नेहरू जी हमारे देश के सभी युवाओं को यह संदेश देना चाहते थे कि यह समय हम सभी के लिए कड़ी मेहनत करने और अपने देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने का है।
अन्यथा अगर इस समय देश का युवा जागरूक नहीं होगा तो हमारा देश अंग्रेजों से आजादी कैसे पायेगा।
17. करो या मरो (महात्मा गांधी)
“करो या मरो का नारा” महात्मा गांधी जी ने 8 अगस्त 1942 को दिया था। भारत छोड़ो भाषण महात्मा गांधी द्वारा 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करते समय दिया गया भाषण है। इस भाषण में उन्होंने भारतीयों से दृढ़ संकल्प का आह्वान करते हुए ‘करो या मरो’ का नारा दिया।
18. भारत छोड़ो (महात्मा गांधी)
“भारत छोड़ो” का नारा भी महात्मा गांधी जी ने 8 अगस्त 1942 को दिया था। भारत छोड़ो भाषण महात्मा गांधी द्वारा 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करते समय दिया गया भाषण है। इस भाषण में उन्होंने भारतीयों से दृढ़ संकल्प का आह्वान करते हुए ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया।
19. हे राम (महात्मा गांधी)
“हे राम” महात्मा गांधी जी के अंतिम शब्द थे। जब नाथुरम राम गोडसे ने गांधीजी को गोली मारी तो, उस समय ये दो शब्द गांधीजी के मुंह से निकले थे। जिसने पूरे भारत को रुला दिया था।
20. जय हिन्द (आबिद हसन सफ़रानी)
“जय हिन्द” का नारा भारतीय क्रान्तिकारी “आबिद हसन सफ़रानी” द्वारा दिया गया था। इसका शाब्दिक अर्थ “भारत की विजय” है।
21. दिल्ली चलो (सुभाष चन्द्र बोस)
“दिल्ली चलो” का नारा 5 जुलाई 1943 को नेताजी ने सिंगापुर के टाउन हॉल के सामने सेना को ‘सुप्रीम कमांडर’ के रूप में संबोधित करते हुए लगाया था “दिली चलो” का नारा दिया गया।
उन्होंने “जय हिंद” और “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” (“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा”) का नारा भी दिया था। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था।
22. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा (सुभाष चन्द्र बोस)
“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने रंगून के जुबली हॉल में अपने ऐतिहासिक भाषण के समय दिया था, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा”।
इतिहास में पहली बार, भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आज़ाद हिंद सरकार के 75 वर्ष पूरे होने पर 2018 में लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। 23 जनवरी 2021 को नेताजी की 125वीं जयंती थी, जिसे भारत सरकार ने पराक्रम दिवस के रूप में मनाया था।
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निष्कर्ष:
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