30+ स्वतंत्रता सेनानियों के प्रसिद्ध नारे | Indian Freedom Fighters Slogan in Hindi

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नारों की विशेष भूमिका रही थी। आजादी के लिए बोले गए हर नारे ने भारतीय क्रांतिकारियों में ऐसी जान फूंकी कि हर नारा अंग्रेजों के ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा दिए गए इन नारों ने देश के लोगों को भारत माता के स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक बड़ी प्रेरणा दी। ये नारे ऐसे थे जिन्होंने सभी भारतीय क्रांतिकारियों में देशभक्ति की भावना जगा दी।

इन देशभक्तों ने जनता को एकजुट करने और प्रतिरोध की भावना को प्रज्वलित करने के साधन के रूप में शक्तिशाली नारों का इस्तेमाल किया। नारे आज़ादी की लड़ाई में शक्तिशाली हथियार बन गए, जिससे लोगों में साहस, एकता और दृढ़ संकल्प पैदा हुआ।

इसके ही परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली। यहां भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ऐसे कुछ नारों की सूची दी गई है, जो भारत के फ्रीडम फाइटर्स के स्लोगन है।

आमतौर पर इन नारों से संबंधित प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। यदि आप विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे: IAS, शिक्षक, UPSC, PCS, SSC, बैंक, एमबीए और अन्य सरकारी नौकरियों की तैयारी कर रहे हैं, तो आपको भारत में स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा दिए गए नारों के बारे में अवश्य जानना चाहिए।

स्वतंत्रता की लड़ाई में नारों का प्रभाव

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत के स्वतंत्रता सेनानियों (फ़्रीडम फाइटर्स) द्वारा इस्तेमाल किए गए नारों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां बताया गया है कि उन्होंने कैसे मदद की:

  • लोगों को एक साथ लेकर आए: नारों ने देश के विभिन्न हिस्सों के उन लोगों को एकजुट करने में मदद की जो ब्रिटिश शासन से आजादी चाहते थे।
  • वीरता से लड़ना सिखाया: नारों ने लोगों को साहसी और अपने देश पर गर्व महसूस कराया। उन्होंने लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • संदेश फैलाना: नारे शक्तिशाली संदेश की तरह थे जो देश के हर कोने में मौजूद लोगों तक पहुंचे। उन्हें भाषणों, लेखों और सार्वजनिक समारोहों के माध्यम से शेयर किया गया, जिससे स्वतंत्रता के विचार को फैलाने में मदद मिली।
  • अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना: नारों से पता चलता था कि लोग ब्रिटिश शासकों से खुश नहीं थे। उन्होंने अनुचित व्यवहार से मुक्त होने और अपनी सरकार बनाने के भारतीयों के दृढ़ संकल्प को व्यक्त किया।
  • भागीदारी को प्रोत्साहित करना: नारों ने लोगों को स्वतंत्रता के लिए अपना समर्थन दिखाने के लिए विरोध प्रदर्शनों, हड़तालों और अन्य गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
  • अपनेपन की भावना का निर्माण: नारों ने लोगों को अपने देश के साथ एक मजबूत जुड़ाव महसूस कराया और उन्हें आजादी के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • बलिदान की याद दिलाते हैं: आज भी इन नारों का असर याद किया जाता है। ये हमें हमारी आजादी के लिए हमारे पूर्वजों द्वारा किये गये बलिदान की याद दिलाते हैं।

कुल मिलाकर भारत के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा इस्तेमाल किए गए नारे शक्तिशाली संदेश की तरह थे जो लोगों को एक साथ लेकर आए। नारे लोगों की बहादुरी को प्रेरित करते और पूरे देश में स्वतंत्रता के विचार को फैलाते थे। नारों ने भारत को आज़ादी दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई।

30+ स्वतंत्रता सेनानियों के प्रसिद्ध नारे

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए अतुलनीय बलिदान दिया और उनके प्रयासों से 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिली। इन दिग्गज सेनानियों ने हमारे देश को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने ऐसे नारे दिए जो न केवल लोगों में स्वतंत्र भारत की इच्छा जगाने के लिए प्रेरणादायक थे, बल्कि इतने शक्तिशाली भी थे कि आज भी उनका बहुत बड़ा महत्व है। उनके नारों ने उन्हें और उनके अनुयायियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने और देश को आजादी दिलाने के लिए प्रेरित किया।

क्र. सं.नाराद्वारा दिया गया
1.करो या मरोमहात्मा गांधी
2.तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगानेताजी सुभाष चंद्र बोस
3.इंकलाब जिंदाबादशहीद भगत सिंह
4.सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारामुहम्मद इक़बाल
5.जन गण मन अधिनायक जय हेगुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर
6.आज़ादी दी नहीं जाती, छीन ली जाती हैनेताजी सुभाष चंद्र बोस
7.सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैरामप्रसाद बिस्मिल
8.स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार हैबालगंगाधर तिलक
9.वंदे मातरम्बकीम चंद्र चटर्जी
10.भारत छोड़ोमहात्मा गांधी
11.मारो फिरंगी कोमंगल पांडे
12.जय जवान, जय किसानलाल बहादुर शास्त्री
13.सत्यमेव जयतेपंडित मदन मोहन मालवीय
14.दिल्ली चलोसुभाष चंद्र बोस
15.पूर्ण स्वराजपंडित जवाहरलाल नेहरू
16.देश की पूजा ही राम की पूजा हैमदनलाल ढींगरा
17.कर मत दोसरदार वल्लभ भाई पटेल
18.सम्पूर्ण क्रांतिजयप्रकाश नारायण
19.कश्मीर चलोडॉ. मुरली मनोहर जोशी
20.हे राममहात्मा गांधी
21.जय जगतबिनोवा भावे
22.साम्राज्यवाद का नाश होभगत सिंह
23.साइमन कमीशन वापस जाओलाला लाजपत राय
24.विजयी विश्व तिरंगा प्याराश्यामलाल गुप्ता
25.जय हिंदसुभाष चंद्र बोस
26.हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तानभारतेंदु हरिश्चंद्र
27.वेदों की ओर लौटोस्वामी दयानंद सरस्वती
28.आराम हराम हैपंडित जवाहरलाल नेहरू
29.यदि भारत मर गया तो कौन जीवित रहेगा(पंडित जवाहरलाल नेहरू)
30.अभी भी जिसका खून ना खौला, वो खून नहीं पानी है। जो देश के काम ना आए, वो बेकार जवानी है।चंद्रशेखर आजाद

 

1. करो या मरो (महात्मा गांधी)

यह नारा 8 अगस्त 1942 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने की मांग करते हुए दिया गया था। इस नारे का प्रयोग गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान किया गया था।

महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने औपचारिक रूप से 9 अगस्त, 1942 को इस नारे को पेश किया। गांधीजी ने “करो या मरो” का नारा देकर भारत के आम लोगों को एक साथ लड़ने के लिए प्रेरित किया।

इस नारे का प्रयोग अधिकतर ब्रिटिश सरकार की दमनकारी प्रथाओं के विरोध में किया जाता था। इस नारे की मदद से लोगों को एक साथ मिलकर काम करने और आज़ादी के लिए हर संभव प्रयास करने के लिए प्रेरित किया गया।

2. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा (नेताजी सुभाष चंद्र बोस)

12 सितम्बर, 1944 को रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतीन्द्र दास के स्मृति दिवस पर नेताजी ने अत्यंत मार्मिक भाषण दिया और कहा- “अब हमारी आजादी निश्चित है, लेकिन आजादी बलिदान मांगती है।”

“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा!”

यह देश के युवाओं में प्राण फूंकने वाला वाक्य था, जो न केवल भारत बल्कि विश्व के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए उन्होंने जापान की मदद से आजाद हिंद फौज का गठन किया और देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई।

उनके द्वारा दिया गया नारा ‘जय हिन्द’ भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया।

3. इंकलाब जिंदाबाद (शहीद भगत सिंह)

इंकलाब जिंदाबाद का नारा उर्दू कवि हसरत मोहानी ने दिया था। वह एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे और 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता भी रहे। हालाँकि यह नारा भगत सिंह (1907-1931) द्वारा 1920 के दशक के अंत में लोकप्रिय हुआ था।

इस नारे का सबसे ज्यादा उपयोग शहीद भगत सिंह द्वारा किया गया था। इसलिए उन्हें इस नारे को एक शक्तिशाली वाक्य बनाने का श्रेय दिया जाता है। आज भी यह नारा लोगों में जोश भर देता है।

4. सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा (मुहम्मद इक़बाल)

यह गीत प्रसिद्ध कवि मुहम्मद इकबाल द्वारा 1905 में लिखा गया था और पहली बार लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में सुनाया गया था। यह इक़बाल की रचना बंग-ए-दारा में शामिल है। उस समय इक़बाल लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में लेक्चरर थे।

उन्हें लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया था। इस दौरान ही उन्होंने यह दिल छू लेने वाला नारा दिया, जो एक गीत था। आज यह गीत जब भी गया जाता है, रौंगटे खड़े कर देता है।

5. जन गण मन अधिनायक जय हे (गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर)

इसे पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा द्वारा आधिकारिक तौर पर “जन गण मन” को भारतीय राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था।

भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ कवि और नाटककार रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं से लिया गया है। भारत के राष्ट्रगान की पंक्तियाँ रवीन्द्रनाथ टैगोर के गीत ‘भारतो भाग्यो बिधाता’ से ली गई हैं। यह मूल गीत बंगाली में लिखा गया था और पूरे गीत में 5 छंद हैं। यह पहली बार 1905 में तत्त्वबोधिनी पत्रिका के एक अंक में प्रकाशित हुआ था।

6. आज़ादी दी नहीं जाती, छीन ली जाती है (नेताजी सुभाष चन्द्र बोस)

जहां एक ओर कांग्रेस टुकड़ों में आजादी दिलाने की बात करती थी, वहीं दूसरी ओर नेताजी इसके पक्ष में थे। उनका मानना था कि गांधी जी के अहिंसा सिद्धांत से आजादी नहीं मिल सकती।

द्वितीय विश्व युद्ध में, उन्होंने ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी शक्तियों के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय सेना का नेतृत्व किया। वह दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, लेकिन गांधीजी से मतभेद के कारण उन्होंने अपना पद छोड़ दिया।

इसी दौरान उन्होंने “आज़ादी दी नहीं जाती, छीन ली जाती है” का नारा दिया था। इस नारे की मदद से उन्होंने भारत के लोगों को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत करने के लिए प्रेरित किया था।

7. सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है (रामप्रसाद बिस्मिल)

बिस्मिल अज़ीमाबादी (1901 – 1978) पटना, बिहार के एक उर्दू कवि थे। 1921 में उन्होंने “सरफरोशी की तमन्ना” शीर्षक से एक देशभक्ति कविता लिखी।

इस कविता को भारत के महान क्रांतिकारी नेता राम प्रसाद बिस्मिल ने भी मुकदमे के दौरान अदालत में अपने साथियों के साथ सामूहिक रूप से गाकर लोकप्रिय बनाया था। इस नारे ने लोगों को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ उठने की आवश्यकता पर जोर दिया।

“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-क़ातिल में है।” इसका अनुवाद है ‘इंकलाब की चाहत हमारे दिल में है, देखना है दुश्मन में कितना दम है’।

8. स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है (बालगंगाधर तिलक)

लोकमान्य तिलक स्वराज के सबसे शुरुआती और मजबूत समर्थकों में से एक थे। वह भारतीय चेतना में एक सशक्त परिवर्तन थे। मराठी भाषा में उनका नारा “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच” (स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ।

आज हम भारत में जिस वातावरण में रह रहे हैं उसके पीछे बहुत बड़ा महत्व है – स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा। जी हां हम बात कर रहे हैं मशहूर स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की। बाद में उन्हें लोकमान्य की उपाधि दी गई।

9. वंदे मातरम् (बकीम चंद्र चटर्जी)

“वंदे मातरम” हमारे स्वतंत्रता के समय का एक और नारा है जिसे हम आज कई सभाओं में सुनते हैं। इसका अनुवाद है, “माँ, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।” बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा गाए गए एक गीत और नारे से कहीं अधिक, यह एक शपथ थी जिसने स्वतंत्रता संग्राम में जोश और देशभक्ति की एक मजबूत खुराक जोड़ दी।

अपनी कविता में चटर्जी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान भारत को एक माँ के रूप में प्रस्तुत किया। 1905 और 1947 के बीच लोगों ने पहले देशभक्ति के नारे के रूप में और फिर युद्ध के नारे के रूप में “वंदे मातरम” का नारा लगाया।

10. भारत छोड़ो (महात्मा गांधी)

भारत छोड़ो भाषण महात्मा गांधी द्वारा 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करते समय दिया गया भाषण है। इस भाषण में उन्होंने भारतीयों से दृढ़ संकल्प का आह्वान करते हुए ‘करो या मरो’ का नारा दिया था।

हालांकि यूसुफ मेहर अली ने “भारत छोड़ो” का नारा दिया। यूसुफ मेहर अली, एक समाजवादी कांग्रेसी और भारतीय राष्ट्रीय संघर्ष के अल्पज्ञात नायक, 1942 में प्रसिद्ध “भारत छोड़ो” नारा लेकर आए।

कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी, बॉम्बे यूथ लीग और नेशनल मिलिशिया सभी उनके द्वारा स्थापित किए गए थे। लेकिन उनके नारे का सबसे अधिक उपयोग महात्मा गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन में किया था।

11. मारो फिरंगी को (मंगल पांडे)

मारो फिरंगी को ” का नारा मंगल पांडे ने दिया था। यह नारा 1857 के विद्रोह की शुरुआत में दिया गया था।

12. जय जवान, जय किसान (लाल बहादुर शास्त्री)

यह नारा 1965 में दिया गया था जब भारत में खाद्यान्न की कमी थी और उसी समय पाकिस्तान ने भी भारत पर आक्रमण कर दिया था। यह भारत के लिए बहुत बुरा समय था और इस समय भारत के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे जिन्होंने उस समय कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।

उन्होंने पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब देने का आदेश दिया और उन्होंने भारत के लोगों को चल रही कठिन परिस्थिति के लिए तैयार किया और उनका सहारा बने, उन्होंने जय जवान जय किसान का नारा भी दिया। ताकि उस समय भारत के किसान और जवान दोनों का मनोबल बढ़ाया जा सके।

प्रधानमंत्री न केवल भारत के अंदर बल्कि भारत के बाहर से भी मदद पाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका पहुंचे और बाहर से भी भारत के लिए मदद लाने की कोशिश की। उस समय पाकिस्तान और भारत के बीच हुए युद्ध में भारत की जीत में लाल बहादुर शास्त्री का बहुत बड़ा हाथ था।

13. सत्यमेव जयते (पंडित मदन मोहन मालवीय)

पंडित मदन मोहन मालवीय ने “सत्यमेव जयते” का नारा 1918 में दिया। यह नारा 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में उनके अध्यक्षीय भाषण में दिया गया था। यह नारा उनके उपन्यास आनंदमठ (1882) में लिखी कविता से लिया गया था।

सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः। येनाक्रमंत्यृषयो ह्याप्तकामो यत्र तत्सत्यस्य परमं निधानम्॥ अंततः सत्य की ही जय होती है न कि असत्य की। यही भारत का राष्ट्रीय नारा भी है।

14. दिल्ली चलो (सुभाष चंद्र बोस)

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने “दिली चलो” का नारा दिया। 5 जुलाई 1943 को, नेताजी ने सिंगापुर के टाउन हॉल के सामने “सुप्रीम कमांडर” के रूप में सेना को संबोधित किया, और “दिल्ली चलो” का नारा दिया।

उन्होंने “जय हिंद” और “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा भी दिया था। “दिल्ली चलो” का नारा देने का श्रेय नेताजी सुभाष चंद्र बोस को दिया जाता है, जो उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) आंदोलन के दौरान दिया था।

15. पूर्ण स्वराज (पंडित जवाहरलाल नेहरू)

स्वतंत्र भारत के प्रधान मंत्री बने “जवाहरलाल नेहरू” ने 1929 में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में “पूर्ण स्वराज” का नारा देकर पूर्ण स्वतंत्रता के लिए लड़ने का प्रस्ताव पारित किया। इस संघर्ष के कारण भारत का आधिकारिक ध्वज फहराया गया।

इस संघर्ष के फलस्वरूप लाहौर में भारत का आधिकारिक झंडा फहराया गया और फिर 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया। पूर्ण स्वराज अर्थात भारत की सत्ता में भारतीयों का 100% योगदान और ब्रिटिश सरकार का शून्य हस्तक्षेप हो।

16. देश की पूजा ही राम की पूजा है (मदनलाल ढींगरा)

मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब के एक संपन्न हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में रंगे हुए थे; लेकिन माताजी बहुत धार्मिक और भारतीय मूल्यों से परिपूर्ण थीं।

उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था। जब मदन लाल को भारतीय स्वतंत्रता क्रांति के आरोप में लाहौर के एक स्कूल से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदन लाल से नाता तोड़ लिया। मदन लाल को क्लर्क, तांगा चालक और एक कारखाने में मजदूर के रूप में काम करना पड़ा।

इसी दौरान उन्होंने “देश की पूजा ही राम की पूजा है” का नारा दिया था।

17. कर मत दो (सरदार वल्लभ भाई पटेल)

सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवनकाल में खेड़ा संघर्ष के नाम से जाना जाने वाला संघर्ष “कर मत दो” के नारे से संबंधित है। उस समय गुजरात का खेड़ा खंड सूखे की चपेट में था, जिसके परिणामस्वरूप किसानों ने ब्रिटिश सरकार से उस वर्ष कर में छूट देने का आग्रह किया।

लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। उसके बाद सरदार पटेल और महात्मा गांधी सहित अन्य लोगों ने किसानों का समर्थन किया और पटेल ने “कर मत लगाओ” का नारा दिया और अंततः ब्रिटिश सरकार को यह मांग माननी पड़ी।

इस नारे का उद्देश्य सूखे के कारण कर देने में असमर्थ किसानों को कर न देने के लिए प्रेरित करना तथा ब्रिटिश सरकार को इस अनुरोध को स्वीकार करने के लिए बाध्य करना था।

18. सम्पूर्ण क्रांति (जयप्रकाश नारायण)

जयप्रकाश नारायण एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थे। उन्हें 1970 के दशक में इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। इंदिरा गांधी को पदच्युत करने के लिए उन्होंने ‘संपूर्ण क्रांति’ नामक आंदोलन चलाया।

वह एक सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिन्हें ‘लोकनायक’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया था। सम्पूर्ण क्रान्ति जयप्रकाश नारायण का विचार व नारा था जिसका आह्वान उन्होने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिये किया था।

19. कश्मीर चलो (डॉ. मुरली मनोहर जोशी)

मुरली मनोहर जोशी एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। वह भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं जिसके वह 1991 से 1993 के बीच अध्यक्ष रहे। जोशी कानपुर लोकसभा क्षेत्र से पूर्व सांसद हैं। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी के पूर्व प्रोफेसर हैं। इन्होंने “कश्मीर चलो” का नारा दिया था।

20. हे राम (महात्मा गांधी)

30 जनवरी 1948 को अहिंसा का सबसे बड़ा पुजारी हिंसा का शिकार हो गया था। भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने के महान संघर्ष में मोहनदास करमचंद गांधी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

अंतिम क्षण में हिंसा का शिकार होने के बाद भी उन्होंने अहिंसा का साथ नहीं छोड़ा, उनके मुख से निकले अंतिम शब्द थे ‘हे राम’!

21. जय जगत (बिनोवा भावे)

क्या आप इस नारे के बारे में जानते हैं, अगर नहीं तो चिंता न करें। आपको यह भी बता दें कि “जय जगत” का यह नारा विनोबा भावे ने दिया था। विनोबा भावे भी भारत के सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। विनोबा भावे एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे और वे गांधीजी के आदर्शों पर चलते थे।

22. साम्राज्यवाद का नाश हो (भगत सिंह)

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह भारत की एक महान शख्सियत हैं, उन्होंने महज 23 साल की उम्र में अपने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय भगत सिंह सभी युवाओं के लिए एक युवा आइकन थे, जिन्होंने उन्हें देश के लिए आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया। भगत सिंह का पूरा जीवन संघर्ष से भरा था, आज के युवा भी उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं।

उन्होंने बहुत से नारे दिए थे, उनमें से “साम्राज्यवाद का नाश हो” नारा उनका एक काफी लोकप्रिय नारा है।

23. साइमन कमीशन वापस जाओ (लाला लाजपत राय)

यह किसी भी राजनीतिक नेता या कानून का विरोध करने के लिए आज भी इस्तेमाल किया जाने वाला नारा है (बेशक, नाम बदल दिया गया है)। इसे पंजाब के शेर लाला लाजपत राय द्वारा दिया गया था, जो लाल-बाल-पाल तिकड़ी का हिस्सा थे।

जब ब्रिटिश सरकार ने 1928 में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए साइमन कमीशन को भारत भेजने का फैसला किया था। तब पैनल में कोई भारतीय सदस्य नहीं था। लालाजी ने आयोग के खिलाफ देश भर में हुए कई विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया था।

इस समय के दौरान उन्होंने “साइमन कमीशन वापस जाओ” का नारा लगाया था। शांतिपूर्ण होने के बावजूद अंग्रेजों ने उनके जुलूस पर लाठीचार्ज किया और सिर पर चोट लगने से लालाजी की मृत्यु हो गई।

24. विजयी विश्व तिरंगा प्यारा (श्यामलाल गुप्ता)

1938 के कांग्रेस अधिवेशन में “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा” नामक प्रसिद्ध झंडा गीत स्वीकार किया गया। इस गीत को रचने वाले श्यामलाल गुप्ता ‘पार्षद’ कानपुर के नरवल के रहने वाले थे।

उनका जन्म 16 सितम्बर 1893 को एक गरीब परिवार में हुआ था। उन्होंने गरीबी में भी उच्च शिक्षा हासिल की थी।

25. जय हिंद (सुभाष चंद्र बोस)

ऐसा माना जाता है कि “जय हिंद” का नारा “नेताजी” सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया था। हालाँकि कुछ विवाद है कि यह वास्तव में जर्मनी में उनके सचिव द्वारा दिया गया था। इस शब्द को स्वतंत्र भारत द्वारा राष्ट्रीय नारे के रूप में अपनाया गया था।

जय हिंद पोस्टमार्क स्वतंत्र भारत का पहला स्मारक पोस्टमार्क भी था। यह 15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के दिन जारी किया गया था। आज “जय हिंद” एक अभिवादन है जिसे हम राजनीतिक बैठकों और यहां तक कि स्कूल समारोहों में भी सुनते हैं।

26. हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान (भारतेंदु हरिश्चंद्र)

हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान का नारा भारतेंदु हरिश्चंद्र ने दिया था। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितम्बर 1850-7 जनवरी 1885) को आधुनिक हिन्दी साहित्य का जनक कहा जाता है। वे हिन्दी में आधुनिकतावाद के प्रथम रचनाकार थे। उनका मूल नाम ‘हरिश्चंद्र’ था, ‘भारतेंदु’ उनकी उपाधि थी।

27. वेदों की ओर लौटो (स्वामी दयानंद सरस्वती)

स्वामी दयानंद सरस्वती ने “वेदों की ओर वापस जाओ” का नारा दिया। वह एक तपस्वी और वेदों में दृढ़ विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। उनका मानना ​​था कि वेद समाज के लिए प्रासंगिक मौलिक ज्ञान और धार्मिक सत्यों का भंडार हैं।

दयानंद सरस्वती (मूलशंकर) ने अप्रैल, 1875 ई. में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म को पुनः शुद्ध रूप से स्थापित करना था। आर्य समाज आंदोलन का प्रसार प्रायः पश्चिमी प्रभावों की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ।

1877 ई. में आर्य समाज का मुख्यालय लाहौर में स्थापित किया गया। जिसके बाद आर्य समाज का अधिक प्रचार हुआ। शुद्ध वैदिक परंपरा में विश्वास के कारण स्वामी जी ने “वेदों की ओर लौटो” का नारा दिया था।

28. आराम हराम है (पंडित जवाहरलाल नेहरू)

यह नारा सबसे पहले भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दिया था और नेहरू जी कहते थे कि आराम करने की बजाय कुछ ऐसा करो जिसका कोई न कोई परिणाम निकले।

यह नारा भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जवाहरलाल नेहरू ने दिया था। जवाहरलाल नेहरू आराम हराम है के नारे के माध्यम से यह कहना चाहते थे कि सफलता मेहनत करने से मिलती है, आराम करने से नहीं।

29.  यदि भारत मर गया तो कौन जीवित रहेगा (पंडित जवाहरलाल नेहरू)

‘भारत मर जाएगा तो कौन रहेगा’ पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था। वह एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और भारत के पहले प्रधान मंत्री थे। पंडित नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने आजादी से पहले और आजादी के बाद भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

30. अभी भी जिसका खून ना खौला, वो खून नहीं पानी है (चंद्रशेखर आजाद)

“अभी भी जिसका खून ना खौला, वो खून नहीं पानी है। जो देश के काम ना आए, वो बेकार जवानी है।” यह नारा चंद्रशेखर आजाद ने दिया था। चन्द्रशेखर आज़ाद एक महान भारतीय क्रांतिकारी थे।

भारतीय क्रांतिकारी, काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वायसराय की ट्रेन को उड़ाने का प्रयास (1926), लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोली चलाई (1928), भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ हिंदुस्तान सोशलिस्ट ने प्रजातंत्र सभा का गठन किया।

उनकी प्रखर देशभक्ति और साहस ने उनकी पीढ़ी के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। चन्द्रशेखर आज़ाद भगत सिंह के सलाहकार और एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और भगत सिंह के साथ-साथ उन्हें भारत के महानतम क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है।

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निष्कर्ष:

तो ये थे स्वतंत्रता सेनानियों के 30 प्रसिद्द नारे, हम उम्मीद करते है की हमारे द्वारा प्रकाशित किये हुए ये सभी स्लोगन जरूर पसंद आये होंगे। यदि आपको ये सभी नारे अच्छे लगे तो इनको शेयर जरूर करें।

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