प्रसिद्ध भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट 2024 | भारत के 10 सबसे बड़े कथावाचक कौन है

भारत एक ऐसा देश है, जिसकी संस्कृति बहुत पुरानी है। यहाँ के लोग काफी धार्मिक और आध्यात्मिक है। भारत के पुराने इतिहास में बहुत से महान ग्रंथ लिखे गए थे, जिनमें अपार ज्ञान भरा हुआ है। सामान्य इंसान के लिए इन ग्रन्थों को पढ़ना और समझना थोड़ा मुश्किल है।

इस कारण से कथा वाचक इन ग्रन्थों और उनमें लिखी गई कथाओं को पढ़कर सुनाते हैं। इस कारण से इन्हें कथा वाचक कहा जाता है। इतिहास में बहुत से कथा वाचक ऐसे हुए हैं, जिन्होंने मानवता को बहुत बड़ा संदेश दिया है।

वर्तमान समय में भी बहुत से ऐसे कथा वाचक हैं, जो लगातार अपने ज्ञान को लोगों में बाँट रहे हैं। आपने जया किशोरी जी के बारे में तो सुना होगा। उनकी आवाज इतनी मधुर है, कि उन्हें लगातार सुनने का मन करता है।

आज के इस लेख में हम आपके लिए भारत के टॉप 10 कथा वाचक लेकर आए हैं। अगर आप एक धार्मिक इंसान हैं, तो आपको इनकी कथा को एक बार अवश्य सुनना चाहिए। इनमें से ज्यादातर भगवद गीता को भी बहुत अच्छे से समझाते हैं।

कथा वाचक बनने के लिए व्यक्ति को धर्म का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। धार्मिक ज्ञान के लिए धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करना होगा। इसके साथ ही कथाकार को लोक व्यवहार एवं आचरण की समझ होना भी आवश्यक है।

व्यक्ति को सामान्य ज्ञान एवं समसामयिक ज्ञान का होना आवश्यक है। धार्मिक पाठ्यक्रम के शब्दों का सर्वोत्तम संभव तरीके से अध्ययन करने में सक्षम होना चाहिए।

भारत के 10 सबसे बड़े कथावाचक कौन है?

Bhagwat Katha Vachak List

कथा सुनाने की कला में दर्शकों को प्रेरणा देने, शिक्षित करने या उनका मनोरंजन करने के लिए मौखीक रूप से कथा सुनाना होता है। कथा सुनाने का मूल लक्ष्य किसी बिंदु या घटना को यादगार, प्रासंगिक और आकर्षक बनाना है।

पारंपरिक लोककथाएँ और पौराणिक कथाएँ, साथ ही समकालीन किताबें कथा के उदाहरण हैं। कथा सुनाने का सांस्कृतिक और मनोरंजन मूल्य है, लेकिन इसमें व्यक्तिगत विकास और परिवर्तन की भी काफी संभावनाएं हैं।

कथा सुनाने के माध्यम से लोग अपने अनुभवों पर विचार करते हैं, नई अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हैं और अन्य लोगों के लिए अपनी सहानुभूति और समझ में सुधार करते हैं। इस तरह से धार्मिक कथा हमें हमारे धर्म को समझाती है।

1. श्री इन्द्रेश उपाध्याय जी

indresh upadhyay

श्री इंद्रेश जी महान आध्यात्मिक और वैदिक ज्ञान के धनी हैं। जब वे केवल 13 वर्ष के थे, तब उन्होंने अपने पिता के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से संपूर्ण श्रीमद्भागवत महापुराण सीख लिया था। कुछ ही महीनों में उन्हें सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत महापुराण कण्ठस्थ हो गया और प्रतिदिन वे पूर्ण श्रद्धा से उसका पाठ किया करते थे।

श्री इंद्रेश उपाध्याय जी का जन्म 7 अगस्त 1997 को श्री कृष्ण चंद्र शास्त्री जी (ठाकुर जी) के घर श्री धाम वृन्दावन, भारत में हुआ था। इंद्रेश उपाध्याय ने श्रीमद्भागवत के दिव्य पाठ का अध्ययन किया है और मानवता के शाश्वत लाभ के लिए इस पवित्र पाठ की महिमा करते है।

उन्होंने अपनी प्रथम चरण की शिक्षा कान्हा माखन पब्लिक स्कूल से प्राप्त की। इंद्रेश उपाध्याय जी अत्यंत तेजस्वी एवं प्रसिद्ध कथाकार हैं। उनकी मधुर आवाज सुनकर हर कोई भक्ति में सराबोर हो जाता है।

उनका जन्म पवित्र संतों के एक दिव्य परिवार में हुआ था। उपाध्याय जी के इस परिवार में असंख्य दिव्य आत्माओं का जन्म हुआ है जिन्हें संस्कृत भाषा और श्रीमद्भागवत पुराण का विशेष ज्ञान है।

उनके जन्म के बाद कई प्रसिद्ध संत और भक्त इस चमत्कारी बालक के दर्शन के लिए ठाकुर जी के घर आये। वह उनके अलौकिक गुणों से पूरी तरह मंत्रमुग्ध हो गए और उन्होंने भविष्यवाणी की, “निकट भविष्य में वह एक महान प्रबुद्ध व्यक्ति के रूप में दुनिया भर के लोगों को आश्चर्यचकित कर देंगे”।

2. गोस्वामी मृदुल कृष्ण जी

mridul krishna goswami

गोस्वामी श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज आध्यात्मिक जगत के ऐसे कथा वाचक हैं, जिनकी कथा सुनने के लिए हर कोई उत्सुक रहता है। वैसे महाराज जी की कथा कहने की शैली इतनी सौम्य है कि हर कोई कथा सुनकर प्रसन्न हो जाता है।

आचार्य श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी जी का जन्म श्रीधाम वृन्दावन में 15वीं सदी के संत स्वामी श्री हरिदास जी महाराज के परिवार में हुआ था।
स्वामी श्री हरिदास भारतीय शास्त्रीय संगीत के संस्थापक थे और प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन के गुरु भी थे।

महाराज श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी का जन्म स्वामी श्री हरिदास जी महाराज के पवित्र कुल में हुआ था। आचार्य श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी जी के पिता का नाम श्री मूल बिहारी जी और माता का नाम श्रीमती शांति गोस्वामी जी है।

महाराज जी के दो भाई हैं, जिनका नाम अतुल कृष्ण और विपुल कृष्ण है। मृदुल कृष्ण जी की पत्नी का नाम श्रीमती वंदना गोस्वामी जी है। मृदुल कृष्ण गोस्वामी का एक बेटा है, जिसका नाम आचार्य श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी है। वह भी अपने पिता की तरह भागवत कथा और भजन गाते हैं।

मृदुल कृष्ण जी ने भागवत, संस्कृत और व्याकरण की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता श्री मूल बिहारी से ली थी। क्योंकि महाराज जी के पिता भी बहुत प्रसिद्ध भागवत वक्ता और कथावाचक थे। जिन्हें संस्कृत, अध्यात्म, भागवत और व्याकरण का बहुत ज्ञान था।

जिसे उन्होंने अपनी पारिवारिक प्रथा के अनुसार अपने पुत्र मृदुल को दे दिया था। अपने परिवार की उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आचार्य मृदुल कृष्ण शास्त्री जी ने भी अपने पुत्र गौरव कृष्ण गोस्वामी जी को वह ज्ञान दिया है।

वे संस्कृत, अध्यात्म, भागवत और व्याकरण का ज्ञान दे रहे हैं ताकि वे भी भगवान का संदेश अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा सकें। मृदुल कृष्ण जी महाराज की प्रारंभिक शिक्षा श्री धाम वृन्दावन में ही पूरी हुई।

इसके बाद उन्होंने संस्कृत संपूर्णानंद विश्वविद्यालय, काशी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश से संस्कृत में मास्टर डिग्री शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। स्वामी श्री हरिदास जी महाराज की भक्ति के फलस्वरूप श्री बिहारी जी का विग्रह रूप प्रकट हुआ।

यह वही विग्रह रूप है, जो हम श्रीधाम वृन्दावन के श्री बांकेबिहारी जी मंदिर में देखते हैं। उस समय स्वामी श्री हरिदास जी महाराज श्री बांके बिहारी जी मंदिर में सेवा करते थे। उनके बाद उनके पुत्र सेवा करते थे, इसी प्रकार उनके परिवार में यह प्रथा चली आ रही है।

जिसके तहत पहले श्री मृदल कृष्ण जी महाराज के पूज्य पिता श्री बांके बिहारी जी मंदिर के गोस्वामी थे, उनके बाद महाराज जी मंदिर में गोस्वामी बन गये और श्री ठाकुर जी की सेवा करते थे।

महाराज जी के बाद अब उनके पुत्र श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी मंदिर के गोस्वामी हैं और श्री ठाकुर जी की सेवा करते हैं। मृदुल कृष्ण जी ने मात्र 16 साल की उम्र से कथा सुनाना शुरू कर दिया था और अब तक 800 से भी अधिक कथाएँ सुना चुके हैं।

बचपन से ही आध्यात्म में गहरी रुचि और पारिवारिक माहौल के कारण उन्होंने छोटी उम्र में ही भागवत और रामायण के कई श्लोक और श्लोक कंठस्थ कर लिए थे। जब महाराज जी 16 वर्ष के थे, तब वे अपने पिता के साथ हरिद्वार गये, जहाँ उन्होंने माँ गंगा के सानिध्य में अपने जीवन की पहली कथा सुनाई थी।

उनके द्वारा सुनाई गई भागवत कथा लोगों को बहुत पसंद आती है, क्योंकि महाराज जी बड़े भाव से कथा सुनाते हैं। उनकी कथा कहने की शैली बहुत ही सरल है जो सुनने वालों को सीधे भगवान से जोड़ती है।

3. धीरेन्द्र शास्त्री जी

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धीरेन्द्र जी का जन्म 4 जुलाई 1996 को छतरपुर के पास गदागंज गाँव में हुआ था। उनका पूरा परिवार आज भी उसी गदागंज में रहता है, जहां बागेश्वर धाम का प्राचीन मंदिर स्थित है। उनका पैतृक घर भी यहीं है। उनके दादा पंडित भगवान दास गर्ग (सेतु लाल) भी यहीं रहते थे।

उनके दादाजी ने चित्रकूट के निर्मोही अखाड़े से दीक्षा प्राप्त की थी। जिसके बाद वे गढ़ा गांव पहुंचे, जहां उन्होंने बागेश्वर धाम मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। धीरेंद्र कृष्ण के दादा भी यहीं दरबार लगाते थे।

धीरेंद्र जी महाराज के माता-पिता और एक छोटा भाई भी गदागंज स्थित उनके पैतृक घर में रहते हैं। उनके पिता का नाम रामकृपाल गर्ग था। जो नशे के आदी थे, जिसके चलते उन्होंने कुछ खास नहीं किया। उनकी माता का नाम सरोज गर्ग है।

धीरेंद्र के छोटे भाई शालिग्राम गर्गजी महाराज हैं। वह भी बालाजी बागेश्वर धाम को समर्पित है। धीरेंद्र के पिता की निष्क्रियता के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। काफी दिनों तक भोजन की कमी रहती थी।

उनकी माता किसी तरह से घर चलाती थी, रहने के लिए एक छोटा सा कच्चा मकान था, जो बरसात के दिनों में टपकता था। इसे हनुमान जी का आशीर्वाद कहें या किस्मत का खेल। इतनी कम उम्र में धीरेंद्र महाराज ने काफी ऊंचाइयां और शोहरत हासिल की है।

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से प्राप्त की। उन्होंने आठवीं तक की शिक्षा अपने गांव में ही ली। जिसके बाद उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए 5 किलोमीटर दूर गंज के स्कूल जाना पड़ा। आर्थिक तंगी के कारण वह हर दिन 5 किलोमीटर का सफर पैदल तय करते थे।

यहीं से उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए बैचलर ऑफ आर्ट्स संकाय में दाखिला लिया। लेकिन आर्थिक तंगी और धर्म के प्रति श्रद्धा और आस्था के कारण उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।

धीरेंद्र कृष्ण का जन्म शुक्ल वंश के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जहां प्रारंभ से ही अनुष्ठान चलता रहा। उनके दादा एक प्रभावशाली संत थे। जिसके कारण धीरेंद्र को बचपन से ही गुरु की कृपा प्राप्त हुई। उनके दादा बागेश्वर धाम में ही रहते थे।

उनका जन्म उसी गांव में हुआ था। जिसके चलते पूरा परिवार रोजाना बागेश्वर धाम जाता था। यह उनके दादा के गुरु सन्यासी बाबा की समाधि भी है। सन्यासी बाबा भी उन्हीं के वंश के हैं। जिन्होंने 320 साल पहले समाधि ली थी।

धीरेंद्र का मानना है कि उन्हें जो भी ज्ञान और अलौकिक शक्तियां मिलीं है, वह सब उनके दादा और सन्यासी बाबा की कृपा का फल है। उनके दादाजी पहले ही गृहस्थ आश्रम छोड़कर संन्यास आश्रम में प्रवेश कर चुके थे।

2010 में उनके दादा सेठू लाल गर्ग ने काशी में अपना शरीर त्याग दिया। इनकी नेट वर्थ (नेट वर्थ) 19.5 करोड़ है। इनका अपना एक यूट्यूब चैनल भी है। आप बागेश्वर धाम की वेबसाइट पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी के बारे में और अधिक जानकारी ले सकते हैं।

4. स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज

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स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज दुनिया भर में नागा साधुओं के सबसे बड़े गुरु और सबसे पुराने जूना अखाड़े के प्रसिद्ध आचार्य महामंडलेश्वर के रूप में जाने जाते हैं। एक आध्यात्मिक व्यक्ति होने के साथ-साथ वह हिंदू धर्म के एक महान संत और एक लेखक भी हैं।

स्वामी जी ने 10 लाख से अधिक संन्यासियों को अपने अखाड़े में दीक्षित किया है। हरिद्वार स्थित जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी श्री अवधेशानंद गिरि महाराज साधु समाज के उत्कृष्ट व्यक्तित्व एवं आदर्श के रूप में पूरे विश्व को मार्गदर्शन दे रहे हैं।

वे लाखों लोगों के आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ कई लोगों के लिए प्रेरणा भी हैं। स्वामी जी एक प्रतिष्ठित वक्ता भी हैं, जो मृदुभाषी होने के साथ-साथ हृदय में गहरे प्रेम के साथ अपने प्रवचनों के माध्यम से लोगों के मन में दूसरों के प्रति ईमानदारी और दृढ़ संकल्प और आत्म-जागरूकता की भावना पैदा करते हैं।

महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन उत्तर प्रदेश के खुर्जा में हुआ था। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही अपने आप में रहने वाले और खिलौनों आदि में रुचि न दिखाने वाले बच्चे थे।

उन्हें अक्सर अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने पिछले जन्म की घटना पर चर्चा करते देखा जाता था। परिवार वालों का मानना है कि स्वामी जी ने मात्र ढाई साल की उम्र में ही अपना घर छोड़ दिया था, लेकिन परिवार के लोग उन्हें बचपन में ही समझा-बुझाकर घर वापस ले आये।

इसके बाद उनकी आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा बढ़ गई। आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद जी महाराज द्वारा कई पुस्तकें लिखी गई हैं। उनके द्वारा लिखित पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।

इनमें समुद्र के मोती, सत्यम शिवम सुंदरम, प्रेरणा के फूल, जीवन दर्शन, अमृत गंगा, कल्पवृक्ष की छाया, ज्ञान सूत्र, पूर्णता की ओर, आत्म अनुभव साधना मंत्र, ब्रह्म सत्य है, आत्म आलोक, गरिष्ठ गीता, स्वर्ण अपना जीवन शामिल हैं।

स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज पहले निरंजनी अखाड़े में रहते थे. इसके बाद जूना अखाड़े में शामिल होने के बाद उन्हें स्वामी अवधेशानंद गिरि के नाम से संबोधित किया जाने लगा। इसके बाद साल 1998 में जूना अखाड़े के सभी संतों ने उन्हें आचार्य महामंडलेश्वर की उपाधि दी।

दरअसल हरिद्वार स्थित जूना अखाड़ा भारत में साधुओं का सबसे बड़ा और विशाल समूह है, जिसमें लाखों नागा साधु रहते हैं। वे वहाँ उन साधुओं को कथा सुनाते हैं।

5. श्री देवकीनंदन ठाकुर जी

devkinandan thakur ji maharaj

देवकीनंदन ठाकुर महाराज एक हिंदू पौराणिक कथाकार, गायक और आध्यात्मिक गुरु हैं। आपने इन्हें यूट्यूब और टीवी डिबेट्स में देखा होगा। वर्ष 1997 से महाराज श्री श्रीमद्भागवत कथा, श्री राम कथा, देवी भागवत, शिव पुराण कथा, भागवत गीता आदि पर प्रवचन देते आ रहे हैं।

वर्ष 2015 में उन्हें “यूपी रतन” पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। देवकीनंदन ठाकुर महाराज का जन्म 12 सितंबर 1978 को उत्तर प्रदेश के मथुरा के ओहावा गांव में हुआ था। देवकीनंदन ठाकुर मात्र 6 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर वृन्दावन पहुंचे और ब्रज के रासलीला संस्थान में भाग लिया।

श्री देवकीनंदन ठाकुर महाराज का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। श्री देवकीनंदन ठाकुर के पिता का नाम राजवीर शर्मा और माता का नाम श्रीमती अनुसुइया देवी है। ठाकुर जी ने अपना बचपन कृष्ण भक्ति और लोक कथाएँ सुनते हुए बिताया है।

देवकीनंदन ठाकुर की पत्नी का नाम अंदमाता और उनके बेटे का नाम देवांश है। वह अपना सादा जीवन जीते हैं जो लोगों के लिए प्रेरणा का काम करता है। वर्तमान में श्री देवकीनंदन ठाकुर छटीकरा वृन्दावन रोड, वैष्णो देवी मंदिर के पास, श्री धाम वृन्दावन में निवास करते हैं।

देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने अंग्रेजी शिक्षा में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है, इसके अलावा उन्होंने हिंदी सनातन संस्कृति से संबंधित सभी प्रकार के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया है और देवकीनंदन ठाकुर को सभी ग्रंथ मौखिक रूप से याद हैं।

उन्हें वैदिक और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त है और मात्र 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने श्रीमद्भागवत पुराण को कंठस्थ कर लिया था। देवकीनंदन ठाकुर महाराज के गुरु आचार्य पुरूषोत्तम शरण शास्त्री जी ने उनका नाम देवकीनंदन ठाकुर महाराज रखा और उनकी प्रतिभा तथा बोलने की कला के कारण उन्हें श्रीमद्भागवत पुराण का पाठ करने का कार्य सौंपा।

6. मोरारी बापू

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मोरारी बापू के बारे में आपने आजकल सोशल मीडिया पर खूब सुना और देखा होगा। उनके विचार, कविताएं और उपदेश आए दिन सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं। उन्होंने भारत समेत दुनिया भर के कई अलग-अलग देशों में राम कथा कार्यक्रम आयोजित किए हैं।

इसके अलावा वह दान के काम में भी सबसे आगे हैं। मोरारी बापू का जन्म देश की आजादी से एक साल पहले 25 सितंबर 1946 को गुजरात में महुआ के पास तलगरजादा गांव में हुआ था। मोरारी बापू के पिता का नाम प्रभु दास बापू हरियाणी और माता का नाम सावित्री बेन है।

मोरारी बापू के छह भाई और दो बहनें हैं, जिनमें मोरारी बापू सबसे छोटे हैं। मोरारी बापू शादीशुदा हैं। मोरारी बापू की पत्नी का नाम नर्मदाबेन है। उन्हें नर्मदाबेन से 1 बेटा और 3 बेटियां हैं जिनके नाम पृथ्वी हरयानी, भावना, प्रसन्ना और शोभना हैं।

वर्तमान में मोरारी बापू श्री चित्रकूटधाम ट्रस्ट, तलगरज़ादा, महुवा, जिला-भावनगर (गुजरात) में रहते हैं और कथा के आयोजन के लिए देश-विदेश में भ्रमण करते हैं। मोरारी बापू ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गवर्नमेंट हाई स्कूल, तलगरज़ादा (गुजरात) से प्राप्त की।

इसके बाद उन्होंने अपनी कॉलेज की पढ़ाई शाहपुर कॉलेज, जूनागढ़ से की और शिक्षण में डिग्री कोर्स प्राप्त किया। मोरारी बापू गुजराती और हिंदी भाषा का अधिक प्रयोग करते हैं।

अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान मोरारी बापू अपना अधिकांश समय अपने दादा-दादी के साथ बिताते थे, बचपन में वह तुलसी के बीजों की माला बनाते थे और अपने दादा-दादी से लोक कथाएँ और रामचरितमानस के दोहे सुनते थे।

वर्ष 1960 में मात्र 14 वर्ष की उम्र में मोरारी बापू ने पहली बार रामप्रसाद महाराज के सानिध्य में अपने गढ़ नगर के रामजी मंदिर में रामकथा का वाचन किया था। मोरारी बापू ने अपने गृह नगर के एक हाई स्कूल में 10 वर्षों तक शिक्षक के रूप में बच्चों को भी पढ़ाया था।

7. जया किशोरी जी

jaya kishori ji

जया किशोरी एक भारतीय कथावाचक और भजन गायिका हैं जो भजन गायन और कथा कहने की अपनी अनूठी शैली के लिए जानी जाती हैं। वह अपने शुरुआती दिनों में गोविंदराम मिश्र और स्वामी रामसुखदास और पंडित विनोद कुमार जी के संरक्षण में प्रचार करती थीं।

पं. गोविंदराम मिश्र उन्हें ‘राधा’ कहा करते थे। भगवान कृष्ण के प्रति उनका प्रेम देखकर मिश्र ने उन्हें ‘किशोरी जी’ की उपाधि दी। तभी से उन्हें ‘किशोरी जी’ के नाम से जाना जाता है।

जया जब महज 7 साल की थीं, तब उन्होंने बसंत महोत्सव के दौरान कोलकाता में आयोजित एक सत्संग में पहली बार भजन गाया था। जब जया किशोरी 10 साल की हुईं तो उन्होंने अकेले ही मंच पर ‘सुंदर कांड’ का पाठ किया, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया।

उनके दादा-दादी ने उन्हें कई भजन सिखाए और उनके आध्यात्मिक विकास को प्रभावित करने के लिए भगवान कृष्ण की कई कहानियाँ सुनाईं। उन्होंने 20 से ज्यादा भजन एल्बम में अपनी आवाज दी है।

उनके कुछ एल्बमों में ‘शिव स्तोत्र,’ ‘सुंदरकांड,’ ‘मेरे कान्हा की,’ ‘श्याम थारो खाटू प्यारे,’ ‘दीवानी माई श्याम की’ और ‘जयकिशोरी के हिट्स’ शामिल हैं। जया किशोरी अपने 7 दिवसीय ‘कथा श्रीमद्भागवत’ और 3 दिवसीय ‘कथा नानी बाई रो मायरो’ आध्यात्मिक प्रवचनों के लिए जानी जाती हैं।

जया किशोरी जी का पूरा नाम जया शर्मा है, उनका जन्म 13 जुलाई 1995 को राजस्थान के गांव सुजानगढ़ में एक गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जया किशोरी जी के पिता का नाम शिव शंकर शर्मा (राधे श्याम हरितपाल) और माता का नाम गीता देवी हरितपाल है।

किशोरी जी के सभी भाई-बहनों में जया बड़ी हैं। अपने पिता के काम में रुचि न दिखाते हुए उन्होंने बचपन से ही भजन गाया। जया किशोरी जी का मन बचपन से ही भगवान की भक्ति में लगता था। बचपन में उनके घर में हनुमान जी के सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता था।

धीरे-धीरे उन्होंने कीर्तन करना, भजन गाना और जागरण में भजन गाना शुरू कर दिया, जिसके चलते आज वह भारत के अलग-अलग राज्यों में भजन गीत गाती हैं और भगवान की महिमा का प्रचार-प्रसार कर रही हैं।

जया किशोरी जी के घर में शुरू से ही भक्तिमय माहौल होने के कारण उनकी रुचि भगवान की कथा और भजनों में बढ़ती गई। आज किशोरी जी भारत की सबसे प्रसिद्ध कथावाचक में से एक हैं।

8. आचार्य गौरव कृष्ण गोस्वामी जी

gaurav krishna goswami

गौरव कृष्ण गोस्वामी जी श्री स्वामी हरिदासी संप्रदाय की आध्यात्मिक वंश परंपरा से हैं। पूज्य आचार्य श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी का जन्म श्री स्वामी हरिदास जी के संप्रदाय की 7वीं पीढ़ी में हुआ था। इस संप्रदाय में कई पीढ़ियों से अध्यात्म के प्रति समर्पण का प्रचार किया जा रहा है।

उन्होंने 18 साल की उम्र में अपने राजवंश की कमान संभाली और यह ज्ञान और जिम्मेदारी उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली थी। जिसे वह बखूबी निभा रहे हैं। गौरव कृष्ण गोस्वामी जी 18 वर्षों से कथा कर रहे हैं।

श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी ने श्रीमद्भागवत जी का इस प्रकार प्रचार-प्रसार किया और एक ऐसी आध्यात्मिक लहर चलायी जिसने न केवल बुजुर्गों का बल्कि युवा पीढ़ी का भी जीवन बदल दिया है।

उन्होंने अपने गहन प्रेम और भक्ति से अनेक लोगों के हृदय में अपने ज्ञान का परिचय कराया और श्रीमद्भागवत जी के ज्ञान से सभी भक्त प्रेमियों को सच्ची सुख-शान्ति का अनुभव कराया।

पूज्य आचार्य श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी का जन्म श्री स्वामी हरिदास जी के संप्रदाय की 7वीं पीढ़ी में हुआ था। दिव्य श्रीमद्भागवतम का अध्ययन किया है और मानवता के शाश्वत लाभ के लिए इस पवित्र ग्रंथ की महिमा का जाप किया है।

श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज का जन्म 6 जुलाई 1984 को श्री धाम वृन्दावन, भारत में श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामीजी और श्रीमती वंदना गोस्वामीजी के घर हुआ था। जिन परिवारों पर श्री बाँकेबिहारी जी की कृपा रही है उन परिवारों की सभी पीढ़ियाँ संगीत में बहुत निपुण रही है।

इनका जन्म बहुत ही पवित्र परिवार में हुआ है। हमने आपको ऊपर श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामीजी के बारे में बताया है। ये उन्हीं की संतान हैं, जो अपने पिता के नक्शे कदमों पर चल रहे हैं।

9. देवी चित्रलेखा

devi chitralekha

देवी चित्रलेखा का जन्म 19 जनवरी, 1997 में हरियाणा (खंबी गांव, पलवल जिला, हरियाणा, भारत) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें भजन और उपदेश में रुचि थी। कहा जाता है कि जब वह 4 साल की थीं तो एक पब्लिक स्कूल में बंगाली गुरु गिरधारी बाबा की संस्था से जुड़ गईं और वहां ट्रेनिंग लेने लगीं।

इनके पिता का नाम तुकाराम शर्मा और माता का नाम चमेली देवी है। इनके दादाजी का नाम स्वर्गीय राधा किशन शर्मा और दादी का नाम किशन देवी है। इन्होंने 2017 में माधव प्रभु के साथ विवाह किया था।

6 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार लोगों के बीच उपदेश देना शुरू किया। चित्रलेखा जी ने अपना पहला उपदेश उत्तर प्रदेश के बरसाना में दिया था, जहां एक कार्यक्रम में बाबा रमेश ने अचानक उन्हें माइक दिया और बोलने के लिए कहा।

उसके बाद चित्रलेखा जी आधे घंटे तक लगातार बोलती रहीं। फिर इन्होंने वृंदावन में ही 7 दिन के लिए ‘भागवत कथा’ का कार्यक्रम ऑर्गनाइज किया। देवी चित्रलेखा जी भारत की एक लोकप्रिय आध्यात्मिक संत, भागवत प्रचारक और प्रेरक वक्ता हैं।

उन्हें भारत की सबसे कम उम्र की आध्यात्मिक संत भी माना जाता है। चित्रलेखा जी को भजन गाने, हारमोनियम बजाने और उपदेश देने का अच्छा ज्ञान है। उनके कार्यक्रम भारत के साथ-साथ UK, USA और अफ्रीका जैसे कई देशों में होते हैं।

देवी चित्रलेखा जी के परिवार की बात करें तो उनके पिता का नाम तुकाराम शर्मा और माता का नाम चमेली देवी है। उनके एक बड़े भाई हैं जिनका नाम प्रत्यक्ष शर्मा है। उनके दादा का नाम स्वर्गीय राधा किशन शर्मा और दादी का नाम किशन देवी है।

श्री भागवत कथा और प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध देवी चित्रलेखा जी ने अब तक कई कथाएँ और प्रवचन दिए हैं, उनके प्रवचनों में भगवान कृष्ण की कहानियाँ अधिक हैं। इनकी कथा सुनने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।

देवी चित्रलेखा जी भक्ति और ध्यान में अत्यंत लोकप्रिय हैं। वह अपने प्रवचनों में लोगों को राधे कृष्ण और हरे कृष्ण का मंत्र सिखाती हैं ताकि लोगों का जीवन भगवान के काम में लगे, ताकि उनका जीवन सफल हो सके।

10. गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

gurudev ravi shankar

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर एक मानवतावादी नेता, आध्यात्मिक शिक्षक और शांति के दूत हैं। 1956 में दक्षिणी भारत में जन्मे गुरुदेव श्री श्री रविशंकर एक प्रतिभाशाली बालक थे।

चार साल की उम्र तक वह प्राचीन संस्कृत ग्रंथ भगवद गीता के कुछ हिस्सों का पाठ करने में सक्षम थे और अक्सर गहरे ध्यान में पाए जाते थे। गुरुदेव के पहले शिक्षक सुधाकर चतुर्वेदी का महात्मा गांधी के साथ लंबा जुड़ाव था।

1973 में सत्रह वर्ष की आयु तक, गुरुदेव ने वैदिक साहित्य और भौतिकी दोनों में डिग्री के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। गुरुदेव ने एक अंतरराष्ट्रीय, गैर-लाभकारी, शैक्षिक और मानवीय संगठन के रूप में आर्ट ऑफ लिविंग की स्थापना की।

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर विश्व स्तर पर सम्मानित आध्यात्मिक और मानवतावादी इंसान हैं। उन्होंने तनाव-मुक्त, हिंसा-मुक्त समाज के लिए एक अभूतपूर्व विश्वव्यापी आंदोलन का नेतृत्व किया है।

गुरुदेव ने अद्वितीय, प्रभावशाली कार्यक्रम विकसित किए हैं जो वैश्विक, राष्ट्रीय, सामुदायिक और व्यक्तिगत स्तरों पर चुनौतियों से निपटने के लिए व्यक्तियों को सशक्त, सुसज्जित और परिवर्तित करते हैं।

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निष्कर्ष:

तो ये थे दुनिया के सबसे प्रसिद्ध भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट, हम आशा करते है की इस लेख को संपूर्ण पढ़ने के बाद आपको भारत के 10 सबसे बड़े कथावाचक कौन है इसके बारे में पूरी जानकारी मिल गयी होगी।

अगर आपको ये लेख अच्छी लगी तो इसको शेयर अवश्य करें ताकि अधिक से अधिक लोगों को ये महान कथा वाचकों के बारे में सही जानकारी मिल पाए।

इसके अलावा यदि आपको और कोई फेमस कथा वाचक का नाम पता है तो उनके बारे में कमेंट में हमें जरूर बताये हम उनको इस लिस्ट में शामिल कर देंगे।

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