दुनिया की 11 सबसे खतरनाक पावरफुल स्पेशल कमांडो फोर्स

हम सभी सेना में काम करने वाले पुरुषों और महिलाओं की प्रशंसा करते हैं, लेकिन एक और ग्रुप भी है जो खतरनाक परिस्थितियों में लगातार उनसे बेहतर प्रदर्शन करता है। वे खतरे को ख़त्म करते हैं और एक ऐसे क्षेत्र में प्रवेश करते हैं जिसमें केवल सबसे साहसी ही प्रवेश कर सकता हैं।

जब भी हम स्पेशल फोर्सेज शब्द सुनते हैं तो हमें कुछ अलग सा एहसास होता है, जो हमें PARA, MARCOS और गरुड़ की याद दिलाता है। दुनिया में बहुत सारी कमांडो फोर्स है, जो अपने देश के लिए जान देने की बजाय जान लेती है।

जब दुनिया की सबसे खतरनाक और गुप्त तरीके से मिल्ट्री मिशन करने की बात आती है, तो कमांडो को इसकी जिम्मेवारी सौंपी जाती है। ये सामान्य इंसान की तुलना में काफी मजबूत और परिपक्व होते हैं।

स्पेशल फोर्स, कमांडो फोर्स या स्पेशल ऑपरेशन फोर्स एक प्रकार की हाइ ट्रैंड मिल्ट्री यूनिट है। विभिन्न देशों के युद्ध के इतिहास में यूनिक सेनाओं के कई विवरण हैं, जो पारंपरिक युद्ध के बजाय गुप्त अभियानों में माहिर हैं।

दुनिया की 11 सबसे खतरनाक शक्तिशाली स्पेशल कमांडो फोर्स

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स्पेशल फोर्स, नाम ही अपने आप में बोलता है। ये किसी देश की डिफ़ेस फोर्स की विशिष्ट यूनिट हैं जो अपनी बाउंड्री से परे जा सकती हैं। ये फोर्स वे ऑपरेशन कर सकती है, जिनको करना असंभव लगता है।

दुनिया में हर कमांडो फोर्स को कुछ सबसे कठिन टेस्ट से गुजरना पड़ता है जो कभी-कभी एक आम आदमी के लिए हास्यास्पद लग सकता है। लेकिन उन्हें उसी रूप में ढालने के लिए आवश्यक है जैसे वे हैं। तो आइए जानते हैं, दुनिया की 11 सबसे खतरनाक कमांडो फोर्स कौनसी है?

1. Special Naval Warfare Force (स्पेन)

Special Naval Warfare Force

‘स्पेशल नेवल वारफेयर फोर्स’ को स्पेनिश भाषा में ‘फुएर्ज़ा डी गुएरा नेवल एस्पेशियल- FGNE’ कहा जाता है। यह स्पेनिश नौसेना की स्पेशल फोर्स यूनिट है। इस यूनिट में दुनिया के सबसे खतरनाक कमांडों है, इस कारण इसे दुनिया की सबसे खतरनाक कमांडो फोर्स भी कहा जाता है।

इसे 10 जून 2009 को स्पैनिश नेवी मरीन की स्पेशल ऑपरेशंस यूनिट (UOE) और नेवी डाइविंग सेंटर की स्पेशल कॉम्बैट डाइवर्स यूनिट (UEBC) के विलय के माध्यम से बनाया गया था।

विलय से पहले 2004 और 2009 के बीच ये दोनों यूनिट एक ही स्पेशल नेवल वारफेयर कमांड के तहत ओपरेट होती थीं। 1967 और 2009 के बीच, स्पेनिश नौसेना के विशेष अभियान UOE द्वारा संचालित किए गए थे, जिनकी कई परंपराओं को FGNE ने अपनाया है।

स्पेशल नेवल वारफेयर फोर्स की कमान एक कर्नल या शिप-ऑफ-द-लाइन कैप्टन के अधीन होती है, जिसे स्पेशल नेवल वारफेयर फोर्स के कमांडर का पद प्राप्त होता है।

FGNE खुद को समुद्री वातावरण में ऑपरेशन करने के लिए जानी जाती है, हालांकि यह जमीन पर भी ऐसा कर सकटी है। इस यूनिट को दुनिया में सबसे सक्षम और विशिष्ट ऑपरेटिंग SOF में से एक माना गया है।

2. EKO Cobra (ऑस्ट्रीया)

EKO Cobra Austria

EKO Cobra (ऑस्ट्रियाई जर्मन: Einsatzkommando Cobra; “टास्क फोर्स कोबरा”) ऑस्ट्रियाई Federal Ministry of the Interior की पुलिस टैक्टिकल यूनिट है। EKO कोबरा ऑस्ट्रियाई फेडरल पुलिस का हिस्सा नहीं है, बल्कि सीधे Federal Ministry of the Interior के नियंत्रण में है।

EKO कोबरा की जड़ें Gendarmerieeinsatzkommando Bad Vöslau में निहित हैं, जो मूल रूप से लोअर ऑस्ट्रिया के क्षेत्रीय पुलिस प्राधिकरण द्वारा आतंकवादी खतरों के खिलाफ पूर्वी यूरोपीय यहूदियों की रक्षा के लिए बनाई गई थी।

EKO कोबरा ने दुनिया में बहुत सारे खतरनाक ऑपरेशन किए हैं। इसने 1996 में ग्राज़-कार्लौ जेल में बंधकों को छुड़ाने और कई अन्य अभियानों में अपनी मुख्य भूमिका निभाई है। इसके कारनामे पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।

ऑस्ट्रियाई फेडरल पुलिस का कोई भी सदस्य EKO कोबरा के लिए आवेदन कर सकता है। इसे जॉइन करने के टेस्ट में मेडिकल टेस्ट, मनोवैज्ञानिक टेस्ट और फिजिकल टेस्ट देना होता हैं। 1978 में इसकी स्थापना के बाद से, 1,140 अधिकारियों ने EKO कोबरा में सर्विस की है।

3. The Navy Seals (अमेरिका)

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यूनाइटेड स्टेट्स नेवी सील्स अमेरिकी नौसेना की स्पेशल ऑपरेशंस फोर्स (SOF) हैं। यह फोर्स बेसिक अंडरवाटर डिमोलिशन (BUD) और समुद्री, वायु या भूमि (SEAL) ऑपरेशन में माहिर है। SEALs (समुद्र, वायु, भूमि) टीमें कठिन मिल्ट्री ट्रेनिंग से गुजरती हैं।

इनकी ट्रेनिंग पानी के अंदर होती है। इसके लिए सदस्य को उन बाधाओं का सामना करना पड़ता है जो उनकी सहनशक्ति, नेतृत्व और एक टीम के रूप में काम करने की क्षमता का विकास और टेस्ट करती हैं।

1 जनवरी, 1962 को राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने अपरंपरागत युद्ध के उपयोग का विस्तार करने के लिए डॉक्युमेंट्स पर हस्ताक्षर किए। बदलती सैन्य भूमिका के जवाब में, नौसेना ने SEAL टीम वन और टू को नियुक्त किया।

समुद्री और नदी के वातावरण में काउंटर गुरिल्ला युद्ध और गुप्त तरीके से ओपरेट करने के लिए SEAL टीमों की स्थापना की गई थी। जनवरी 1962 में, पहली SEAL टीमों को समुद्री और नदी के वातावरण में अपरंपरागत युद्ध, गुरिल्ला युद्ध और सीक्रेट मिशन करने के लिए नियुक्त किया गया था।

इनकी पहली तैनाती 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान हुई थी। उसी दौरान ईन्हें वियतनाम भेजा गया जहां ये 1973 तक रहे। वियतनाम के बाद पहला बड़ा ऑपरेशन, जिसमें SEAL ने हिस्सा लिया, वह 1983 में ग्रेनाडा में ऑपरेशन अर्जेंट फ्यूरी था।

उसी वर्ष शेष सभी अंडरवाटर डिमोलिशन टीमों को SEAL या SEAL डिलीवरी व्हीकल (SDV) टीमों के रूप में फिर से नामित किया गया था। 1989 में वे ऑपरेशन जस्ट कॉज़, 1990 और 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान पनामा यह फोर्स एक्टिव हुई थी।

1992 और 1993 में ऑपरेशन रिस्टोर होप के दौरान टास्क फोर्स रेंजर के हिस्से के रूप में यूनिट ने सोमालिया में काम किया। हाल ही में इन्होंने पूर्व यूगोस्लाविया में युद्ध भड़काने वालों के खिलाफ एक ऑपरेशन किया है।

4. Joint Task Force 2 (कनाडा)

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कनाडा की यह खतरनाक कमांडों फोर्स दुनिया की सबसे खतरनाक कमांडो फोर्स में से एक है। ज्वाइंट टास्क फोर्स 2 (JTF2) कनाडाई सशस्त्र बलों की एक अत्यधिक गोपनीय और विशिष्ट स्पेशल ऑपरेशन यूनिट है।

यह देश और विदेश दोनों जगह आतंकवाद विरोधी अभियानों में माहिर है। JTF-2 को 2 अप्रैल 1993 में बनाया गया था। उससे पहले, रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) स्पेशल इमरजेंसी रिस्पांस टीम (SERT) कनाडा की प्राथमिक स्पेशल ऑपरेशंस फोर्स थी।

SERT 1986 में बनाई गई आतंकवाद विरोधी और बचाव करने वाली फोर्स थी। इसके निराकरण पर, JTF2 इन कार्यों के लिए जिम्मेदार बन गई। 1993 में, पहले 100 सदस्य इस नई यूनिट में शामिल हुए थे।

अमेरिका पर हुए 9/11 के बाद, JTF2 ने विदेश में अपनी पहली बड़ी तैनाती में भाग लिया और अफगानिस्तान में इंटरनेशनल स्पेशल ऑपरेशन फोर्स कोलिएशन में शामिल हो गया। इसके बाद यह और भी खतरनाक कमांडो फोर्स बन गई।

इसकी कामयाबी को देखते हुए, कनाडाई सरकार ने इसका बजट लगातार बढ़ाया। आज यह दुनिया की सबसे खतरनाक कमांडो फोर्स में से एक है, जो अपनी और विदेशी धरती पर बड़े से बड़े ऑपरेशन को अंजाम दे सकती है।

5. Special Air Service (यूनाइटेड किंग्डम)

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यूनाइटेड किंग्डम की यह खतरनाक कमांडो फोर्स दुनिया में सबसे प्रसिद्ध फोर्स है। इसे SAS के नाम से भी जाना जाता है। स्पेशल एयर सर्विस (SAS) ब्रिटिश सेना की सबसे प्रसिद्ध स्पेशल फोर्स यूनिट है।

SAS ने पिछले कुछ वर्षों में कई ऑपरेशनों को अंजाम दिया है, जिसमें मीडिया की चकाचौंध में आतंकवाद विरोधी हमलों से लेकर उत्तरी आयरलैंड में गुप्त ऑपरेशन तक सब कुछ शामिल है।

SAS को वर्तमान में इराक में तैनात किया गया है। यह बताया गया है कि इराक में SAS स्क्वाड्रन ‘टास्क फोर्स ब्लैक’ के हिस्से के रूप में काम कर रहा है। यह अमेरिकी नेतृत्व वाली टास्क फोर्स 88 की ब्रिटिश टुकड़ी, जिसे देश में अल-कायदा नेताओं को मारने का काम सौंपा गया है।

इसकी चयन प्रक्रिया दुनिया भर में किसी भी आर्मी में सबसे कठिन में से एक है और अधिकांश उम्मीदवार इसमें असफल हो जाते हैं। SAS लगातार ट्रेनिंग कर रहा है, नई तकनीकें सीख रहा है और मौजूदा तकनीकों को निखार रहा है।

इसका गठन 1941 की गर्मियों में दो स्कॉटिश भाइयों, डेविड और बिल स्टर्लिंग द्वारा किया गया था, जो काहिरा में तैनात थे। इस दौरान उत्तरी अफ़्रीका में युद्ध अंग्रेज़ों के लिए अच्छा नहीं चल रहा था।

फिर स्टर्लिंग्स ने दुश्मन के इलाके के अंदर गुरिल्ला युद्ध करने के लिए इस यूनिट का प्रस्ताव रखा। पहला ऑपरेशन 16 नवंबर 1941 को शुरू किया गया था, इस दौरान SAS के कमांडो ने दुश्मन पर भयंकर कहर बरपाया था।

6. Marcos Special Forces (भारत)

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भारत के सबसे खतरनाक कमांडो, जिनका सामना करने से दुनिया की हर ताकत डरती है। भले ही Marcos को दूसरे देश खतरनाक नहीं मानते हैं, लेकिन हकीकत इससे कुछ अलग है। कुछ रक्षा विशेषज्ञ भारत की इस कमांडो फोर्स को दुनिया की सबसे खतरनाक कमांडो फोर्स मानते हैं।

मार्कोस कमांडो भारतीय नौसेना की एक स्पेशल यूनिट, एक अत्यधिक कुशल और सीक्रेटिव फोर्स है जो अपनी असाधारण युद्ध क्षमताओं और बेजोड़ बहादुरी के लिए प्रसिद्ध है। आधिकारिक तौर पर इसे मरीन कमांडो फोर्स के रूप में जाना जाता है।

1987 में अपनी स्थापना के बाद से भारतीय नौसेना की इस स्पेशल फोर्स ने विभिन्न युद्ध, आतंकवाद-निरोध, अपरंपरागत युद्ध और बचाव कार्यों सहित विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।

वर्तमान समय में 2000 भारतीय सैनिक इस कमांडो फोर्स में काम करते हैं। 26/11 के मुंबई हमलों में उनकी भागीदारी के दौरान उनकी वीरता और साहस प्रमुखता से सामने आया था। ये कश्मीर जैसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में काम करने के लिए भारतीय सेना के साथ सहयोग करते हैं।

26 फरवरी 1987 को, मार्कोस को आधिकारिक तौर पर इंडियन नेवी के भीतर एक इलाइट स्पेशल ऑपरेशन यूनिट के रूप में स्थापित किया गया था, जिसमें शुरुआत में अत्यधिक कुशल जवानों का एक चुनिंदा ग्रुप शामिल था।

मार्कोस के प्रारंभिक कैडर को खतरनाक ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता था। जिसमें उभयचर युद्ध (amphibious warfare), स्पेशल ऑपरेशन रणनीति, लड़ाकू डाइविंग और अपरंपरागत युद्ध तकनीक जैसे विविध क्षेत्र शामिल थे।

7. Sayeret Matkal (इज़रायल)

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सायरेट मटकल को दुनिया की खतरनाक स्पेशल ऑपरेशन यूनिट में से एक मानी जाती है। यह इज़राइल की सबसे गुप्त यूनिट में से एक हैं और इसके लगभग सभी ऑपरेशन अत्यधिक गुप्त तरीके से किए जाते हैं।

इस फोर्स के बारे में जो ज्ञात है वह यह है कि यह एक क्षेत्रीय खुफिया जानकारी एकत्र करने वाली यूनिट हैं जो दुश्मन की चाल को समझती है। यह यूनिट सभी से पूरी तरह से स्वतंत्र है और अपने मिशन सीधे जनरल स्टाफ से प्राप्त करती है।

सायरेट मटकल इजराइल के खुफिया और विशेष अभियान की सबसे टॉप फोर्स है। यह अफवाह है कि इनके मिशन अमेरिकी सेना के CAG जैसे अमेरिकी स्पेशल फोर्सेज के कारनामों को भी पार कर गए हैं।

1957 में IDF (Israel Defense Forces) ने निर्णय लिया कि उसे एक ऐसी यूनिट की आवश्यकता है जो नियमित SF यूनिट्स की कमान संभाल सके। इसके लिए उन्होंने सबसे अच्छे यंग लड़कों को इसके लिए भर्ती किया।

उन्होंने एक्टिव रूप से ऐसे लोगों का चयन किया जिनके पास अत्यधिक बुद्धिमत्ता के साथ-साथ एथलीट स्तर की फिटनेस भी हो। इसका उद्देश्य सबसे अच्छे सैनिकों से बनी एक यूनिट बनाना था जो दुनिया में कहीं भी, किसी भी परिस्थिति में लगभग असंभव मिशन को अंजाम दे सके।

फिर सायरेट मटकल ने एक साल बाद ब्रिटिश SAS फोर्स के आधार पर जनरल स्टाफ के इलाइट स्पेशल फोर्स ऑपरेशन के रूप में स्वतंत्र रूप से काम करना शुरू किया। 60 के दशक के अंत में सायरेट मटकल ने दुनिया में पहली बंधक-बचाव और आतंकवाद-रोधी तकनीक विकसित करना शुरू कर दिया था।

8. Delta Force (अमेरिका)

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“डेल्टा फ़ोर्स”, जिसे आधिकारिक तौर पर 1st Special Forces Operational Detachment-Delta (1st SFOD-D) के रूप में जाना जाता है। यह अमेरिकी स्पेशल मिशन यूनिट्स में से एक है जो मुख्य रूप से आतंकवाद विरोधी मिशन पर केंद्रित है।

इस फोर्स के कमांडो दुनिया के किसी भी कोने में छुपे आंतकियों को मारने के लिए प्रसिद्ध है। हाल ही में इसका नाम बदलकर कॉम्बैट एप्लिकेशन ग्रुप (CAG) कर दिया गया है और अब इसे आधिकारिक तौर पर आर्मी कंपार्टमेंटेड एलिमेंट्स (ACE) के रूप में जाना जाता है।

डेल्टा फ़ोर्स मुख्य रूप से एक टियर-वन आतंकवाद विरोधी यूनिट है, जिसे विशेष रूप से उच्च-मूल्य वाली यूनिट्स को मारने या पकड़ने या आतंकवादी ग्रुप्स को नष्ट करने के लिए निर्देशित किया जाता है।

डेल्टा फ़ोर्स बेहद लचीली है और प्रत्यक्ष-कार्रवाई मिशन, बंधक बचाव और गुप्त मिशनों में सीधे काम करती है। डेल्टा फोर्स ज्वाइंट स्पेशल ऑपरेशंस कमांड (JSOC) के ओपरेशनल नियंत्रण में है। हालांकि प्रशासनिक रूप से आर्मी स्पेशल ऑपरेशंस कमांड (USASOC) द्वारा समर्थित है।

अमेरिका के सैन्य इतिहास की तुलना में, डेल्टा फोर्स काफी नई है। इसका गठन 1977 में इसके पहले कमांडर कर्नल चार्ल्स बेकविथ द्वारा किया गया था। दुनिया भर में आतंकवाद के बढ़ते खतरे के साथ, 1970 के दशक की शुरुआत में ब्रिटिश स्पेशल एयर सर्विस (SAS) के साथ काम करने के बाद बेकविथ को सेना के भीतर एक सटीक स्ट्राइक फोर्स की आवश्यकता महसूस हुई।

इसके बाद बेकविथ को नई यूनिट बनाने का काम सौंपा गया था और बड़े पैमाने पर स्पेशल फोर्सेज ग्रुप्स से जवानों को जॉइन करवाया था। पिछले कुछ दशकों में SFOD-डेल्टा जिस प्रकार के मिशनों में शामिल रहा है, उन्हें वर्गीकृत किया गया है।

9. JW GROM (पोलैंड)

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हममें से ज्यादातर लोगों को ठीक से याद नहीं है कि एक समय पोलैंड यूरोप के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक था। इस काल को इतिहासकार पोलैंड का “स्वर्ण युग” कहते हैं।

16वीं सदी के मध्य में लगभग 3,90,000 वर्ग मील और 1.1 करोड़ की बहु-जातीय आबादी वाला पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल रूस और तुर्की के बाद यूरोप में सबसे बड़ा राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक साम्राज्य था।

प्रत्येक राष्ट्र को शांति से रहने के अधिकार की घोषणा करते हुए इस देश ने किसी भी पड़ोसी पर विजय प्राप्त नहीं की, सैन्य दृष्टिकोण से यह एक बहुत बड़ी और गंभीर गलती थी। जो हम अक्सर भारत के साथ देखते हैं।

इसके परिणामस्वरूप पोलैंड ने खुद को हथियारबंद करना बंद कर दिया और अपनी सैन्य रणनीति पोस्पोलाइट रुस्ज़ेनी पर आधारित की। जो पोलैंड साम्राज्य और पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल की अवधि के दौरान सशस्त्र बलों की लामबंदी का एक नाम है।

इस फैसले के कारण 1795 में पोलिश राज्य ने अगले 123 वर्षों के लिए अपनी स्वतंत्रता खो दी। यह 1918 तक यूरोप के मानचित्र पर दिखाई नहीं दिया। प्रथम विश्व युद्ध के अंत और द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के बीच की अवधि में रहने वाली पीढ़ी आशा से भरी थी और अपने देश के पुनर्निर्माण के लिए उत्सुक थी।

JW GROM की स्थापना

इसके बाद एक नई बौद्धिक गुणवत्ता वाली नई पीढ़ी का उदय हुआ, जो समय आने पर अपने देश के लिए मरने को तैयार थी। इसके बाद साल 1939 आया। खुद को सुरक्षित करने के लिए, पोलैंड ने युद्ध की स्थिति में सहायता की उम्मीद में ब्रिटेन और फ्रांस के साथ बहुमूल्य सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर किए।

1 सितंबर 1939 को युद्ध शुरू होने और पोलैंड पर हमले के तुरंत बाद, जर्मनी ने रूस के साथ एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए। जिसने रूस को 17 सितंबर को पोलैंड पर हमला करने की अनुमति दी और इस प्रकार इसे दो हमलावरों के बीच विभाजित कर दिया।

शुरुआत में न तो ब्रिटेन और न ही फ्रांस ने पोलैंड की मदद की। अंततः उन्होंने जर्मनी के साथ युद्ध की घोषणा कर दी, लेकिन उस समय तक पोलैंड के लिए बहुत देर हो चुकी थी। इन सब के बाद JW GROM की स्थापना की गई।

शुरुआत में उनकी ट्रेनिंग 606 सैनिकों द्वारा पूरी की गई थी। पहले GROM ऑपरेटरों को ट्रेंड करने में मदद करने वाले ट्रेनर संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन के विशेषज्ञ थे। आज, यह कोई रहस्य नहीं रह गया है कि वे डेल्टा फ़ोर्स और SAS के विशेषज्ञ थे।

फिर पहले GROM सैनिकों को इन यूनिट्स में प्रशिक्षित होने के लिए भेजा गया था। इसके बाद GROM ने 1994 में हैती में पुलिस-टाइप के सैन्य अभियानों में भाग लिया। आज यह दुनिया की सबसे खतरनाक कमांडों फोर्स में से एक है।

10. GSG 9 (जर्मनी)

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द्वितीय विश्व युद्ध में नाज़ी शासन की हार के बाद, पश्चिमी जर्मन सरकार को पुनर्गठित किया गया। पश्चिमी जर्मनी के पास सेना तो थी लेकिन कोई नेशनल पुलिस फोर्स या ख़ुफ़िया एजेंसी नहीं थी और सरकार के पास अपने राज्यों के आंतरिक मामलों को विनियमित करने की बहुत कम शक्ति थी।

1972 में जब म्यूनिख शहर ने ओलंपिक की मेजबानी की, तो खेलों की सुरक्षा बवेरिया राज्य (जिसकी म्यूनिख राजधानी थी) को सौंपी गई। दुनिया को यह साबित करने के प्रयास में कि जर्मनी अपने सैन्यवादी अतीत से आगे निकल गया है, उसने सुरक्षा में जानबूझकर ढील दी।

5 सितंबर 1972 को, ब्लैक सितंबर ग्रुप के फिलिस्तीनी आतंकवादियों की एक टीम ने ओलंपिक में प्रवेश किया और इजरायली ओलंपिक टीम के दो सदस्यों की हत्या कर दी और नौ अन्य को बंधक बना लिया।

घंटों की तनावपूर्ण बातचीत के बाद म्यूनिख पुलिस ने बंधकों को मुक्त कराने का आखिरी हताश प्रयास किया। यह ऑपरेशन एक आपदा थी। जिसमें सभी नौ इजरायली खिलाड़ी और एक पश्चिमी जर्मन पुलिस अधिकारी मारा गया।

इस तरह की एक और तबाही को रोकने के लिए, GSG 9 को बुंडेसग्रेन्ज़स्चुट्ज़ या फेडरल बॉर्डर गार्ड के एक हिस्से के रूप में बनाया गया था, जो राष्ट्रीय अधिकार वाली कुछ जर्मन सुरक्षा एजेंसियों में से एक थी।

उलरिच वेगेनर के नेतृत्व में इस ग्रुप में 30 पुरुषों की तीन लड़ाकू टीमें थीं, जिसमें अतिरिक्त सदस्य लोजीस्टिक, सपोर्ट, संचार और खुफिया में प्रशिक्षित थे। बाद के वर्षों में, जीएसजी 9 का विस्तार किया गया और इसे तीन डिवीजनों में विभाजित किया गया।

वर्तमान समय में यह कमांडो फोर्स दुनिया की सबसे खतरनाक कमांडो फोर्स मानी जाती है। इस फोर्स ने अपना पहला ऑपरेशन 13 अक्टूबर, 1977 को लुफ्थांसा विमान के अपहरण के दौरान किया था।

जहां विमान हाईजैक करने वालों ने लगभग 90 बंधकों के बदले में पश्चिम जर्मन लाल सेना गुट के नेताओं सहित 13 कैदियों की रिहाई की मांग की। फिर GSG 9 को इसका जिम्मा सौंपा गया। 10 मिनट से भी कम समय में, चार आतंकवादी मारे गए या घायल हो गए और शेष बंधकों को मुक्त कर दिया गया।

इस ऑपरेशन की सफलता जर्मनी के सुरक्षा बलों में जनता का विश्वास बहाल करने के लिए महत्वपूर्ण था।

11. Special Air Service Regiment (ऑस्ट्रेलिया)

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स्पेशल एयर सर्विस रेजिमेंट (SASR), जिसे स्पेशल एयर सर्विस (SAS) भी कहा जाता है। यह ऑस्ट्रेलियाई स्पेशल फोर्स यूनिट है, जो ऑस्ट्रेलिया के स्पेशल ऑपरेशंस कमांड के भीतर मौजूद है।

इस यूनिट का गठन जुलाई 1957 में पहली स्पेशल एयर सर्विस कंपनी, रॉयल ऑस्ट्रेलियन इन्फैंट्री के रूप में किया गया था और इसे ब्रिटिश स्पेशल एयर सर्विस पर आधारित किया गया था।

इसका पहला मिशन, फरवरी 1965 में बोर्नियो में विद्रोह को कुचलना था। SASR ने वियतनाम युद्ध (1954-75) में लड़ाई लड़ी, जहां इसके सदस्यों ने अपने गुप्त युद्धाभ्यास के लिए मा रुंग (“जंगल के प्रेत”) उपनाम अर्जित किया।

वियतनाम के बाद से SASR ने दोहरी भूमिकाएँ निभाई हैं: “हरित” ऑपरेशन, जिसमें सेना की विशेष ऑपरेशन ज़िम्मेदारियाँ शामिल हैं, और “ब्लैक” ऑपरेशन या आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयां शामिल हैं।

SASR यूनिट्स अक्सर ब्रिटिश SAS, अमेरिकी नौसेना SEAL और जर्मनी के ग्रेन्ज़चुट्ज़ग्रुप 9 (GSG 9) सहित अन्य विशिष्ट आतंकवाद विरोधी फोर्सेज के साथ क्रॉस-ट्रेनिंग करती हैं।

इन्होंने 1990 के दशक के साथ-साथ फारस की खाड़ी युद्ध (1990-91) और अफगानिस्तान युद्ध (2001-14) के दौरान सोमालिया में अमेरिकी सेना के साथ काम किया है। अपनी खतरनाक वॉर स्ट्रेटजी के कारण इसे दुनिया की सबसे खतरनाक कमांडो फोर्स माना जाता है।

निष्कर्ष:

तो ये थे दुनिया की 11 सबसे खतरनाक स्पेशल कमांडो फोर्स, हम उम्मीद करते है की इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपको वर्ल्ड की सबसे पावरफुल फाॅर्स के बारे पूरी जानकारी मिल गयी होगी।

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